कड़कडाती सर्दी की सुबह में
सोने की तरह धूप बिखेरता सूर्य
दृदय को शीतलता देता है
तेज चलती पवन से काँपने लगता है बदन
उससे बचने के लिए करते जतन
प्रात:काल में
जब करते हैं कपाल भारती प्राणायाम
और सूर्य नमस्कार के आसन
तब उगने से पहले सूर्य भेज देता अपनी किरण
जब बिस्तर में ही सर्दी से काँप रहा हो बदन
उठने का नहीं करता मन
योग साधना है वह हथियार जब
हम लड़ सकते हैं आलस्य से
वरना तो कहीं नरक नहीं है
वहीं है जहाँ हम रह रहे हैं
सुख कोई पेड पर लटकी वस्तु नहीं
जो हमारे हाथ में आ जाये
मन की अनुभूति है
हम तब तक नहीं खुश रह
सकते जब तन स्वयं न करें जतन
चाणक्य ने कहा है-अपने निरंतर अभ्यास से मनुष्य अनेक गुण प्राप्त कर लेता है पर कुछ गुण अभ्यास से नहीं प्राप्त होते हैं क्योंकि वह स्वाभाविक होते हैं-जैसे दानशीलता, मधुर बोलना, वीरता और विद्वता।
शब्द तो श्रृंगार रस से सजा है, अर्थ न हो उसमें क्या मजा है-दीपकबापूवाणी
(Shabd to Shrangar ras se saja hai-DeepakBapuwani)
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*बेपर इंसान परिदो जैसे उड़ना चाहें,दम नहीं फैलाते अपनी बाहे।कहें दीपकबापू
भटकाव मन कापांव भटकते जाते अपनी राहें।---*
*दीवाना बना ...
4 years ago
1 comment:
योग पर,बढिया संदेश देती एक बढिया रचना है।बधाई\
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