किसी भी रचना की मुख्य पहचान उसका शीर्षक होता है। अगर कभी कोई शीर्षक आकर्षक होता है तो लोग उसे बडे चाव से पढ़ते हैं और कही वह प्रभावपूर्ण नहीं है तो लोग उसे नजरंदाज कर जाते हैं। हालांकि इसमें पढ़ने वाले का दोष नहीं होता क्योंकि हो सकता है उसे वह विषय ही पसंद न हो दूसरा विषय पसंद हो पर शीर्षक से उस पर प्रभाव न डाला हो. वैसे भी हम जब अखबार या पत्रिका देखते हैं तो शीर्षक से ही तय करते हैं कि उसे पढ़ें या नहीं।
मैने एक ब्लोग पर एक नाराजगी भरी पोस्ट देखी थी जिसमें चार ब्लोगरों के नाम शीर्षक में लिखकर नीचे इस बात पर नाराजगी व्यक्त की गयी थी कि लोग शीर्षक देखकर कोई पोस्ट पढ़ते हैं। इसलिए प्रसिद्ध ब्लोगरों के नाम दिये गये हैं ताकि ब्लोगर लोग अपनी गलती महसूस करें। जैसा की अनुमान था और कई ब्लोगरों ने उसे खोला और वहां कुछ न देखकर अपना बहुत गुस्सा कमेंट के रूप में दिखाया। उत्सुक्तवश मैने भी वह पोस्ट खोली और उससे उपजी निराशा को पी गया। इस तरह पाठकों की परीक्षा लेना मुझे भी बहुत खला क्योंकि उस ब्लोगर ने यह नहीं सोचा ही ब्लोग पर कोई ऐसा पाठक भी हो सकता है और जो ब्लोगर नहीं है और उसे कुछ समझ नहीं आयेगा। जो ब्लोगर मशहूर हैं उसे केवल ब्लोग लिखने वाले ही जानते हैं न कि आम पाठक।
जो लोग इस तरह की शिकायतें करते हैं वह मानव मन की कमजोरियों को नहीं जानते जबकि उसके गुण और दुर्गुण दोनों का शिकार खुद भी रहते हैं। ब्लोग, पत्रिका, या समाचार पत्र जहां भी कोई आदमी पढता है शीर्षक देखकर ही पढता है। एक अच्छे लेखक को यह पता होता है इसलिए अपने शीर्षकों में जो आकर्षण का भाव भरते हैं वही हिट हो पाते हैं। शीर्षक देखकर ही लोग समझ पाते हैं। अपने संक्षिप्त पत्रकारिता अनुभव से मैंने यही सखा है कि शीर्षक किसी भी गद्य या पद्य की वास्तविक पहचान होता है, उस काम को छोडे बरसों होने के बावजूद मेरा उस समय का अभ्यास अब ब्लोग पर काम आता है। इसलिए शीर्षक देखकर आदमी पढ़ते हैं तो उसमें उनका दोष मुझे नहीं दिखाई देता-क्योंकि यह मानवीय स्वभाव है, अगर पाठक नहीं पढ़ रहे हैं तो इसका मतलब दोष तो मैं लेखक का ही मानता हूं। वैसे भी शीर्षक तो पोस्ट की पहचान है और उसे यह पता लगता है की उसका विषय क्या है? और हो सकता है की वह विषय किसी को पसंद आता हो किसी को नहीं.
हालांकि मैं कई बार ऐसी रचनाएँ- जो की कवितायेँ होतीं है- अनाकर्षक शीर्षक से डाल जाता हूं जिनके बारे में मेरा विचार यह होता है कि इसे आकर्षक शीर्षक डालकर अधिक लोगों को पढ़ने के लिए प्रेरित करना ठीक नहीं होगा, यह अलग बात है कि मुझे जो नियमित रूप से पढ़ते हैं वह मुझे जानने लगे हैं और वह मेरी कोई पोस्ट नहीं छोड़ते। एक मित्र ने लिखा भी था कि आप कभी-कभी ऐसा हल्का शीर्षक क्यों लगाते हैं कि अधिक लोग न पढ़ें।
मैं बहुत लिखता हूं इसलिए कुछ हल्की रचनाएँ भी निकल जाती हैं-ऐसा मुझे लगता है और नहीं चाह्ता कि पाठकों से अन्याय करूं पर जो कम लिखते हैं उन्हें इस बात से कोई सरोकार नहीं रखना चाहिये कि पोस्ट कैसी है और उन्हें फड़कते शीर्षक ही लगाने का प्रयास करना चाहिऐ ताकि लोग उसे अधिक से अधिक पढ़ें, इसमें कोई बुराई नहीं है पर कुछ न कुछ पढ़ने योग्य होना चाहिये न कि केवल परीक्षा लेना चाहिये।
अभी दो भारत में ही रहने वाले ब्लोगरों से शीर्षक में ही पूछा गया था कि क्या अफगानिस्तान में रहते हैं। उस ब्लोगर ने लिखा था कि लोगों का ध्यान आकर्षित हो इसलिए ऐसा लिखा है ताकि दूसरे ब्लोगर भी अपनी गलती सुधार लें। मैं उस ब्लोगर की तारीफ करूंगा कि उसने सही शीर्षक लगाया था ताकि उसे अधिक ब्लोगर पढ़ें। उसकी पूरी जानकारी काम की थी। उसके बाद मैने अपने एक ब्लोग को देखा तो वह भी अफगानिस्तान में बसा दिख रहा था और उसे सही किया। पोस्ट छोटी थी पर काम की थी-और जैसा कि मैं हमेशा कह्ता हूं कि अच्छी या बुरी रचना का निर्णय पाठक पर ही छोड़ देना चाहिये। इसलिए अपनी पोस्ट भले ही फटीचर लगे पर शीर्षक तो फड़कता लगाना चाहिये पर पाठकों की परीक्षा लेने का प्रयास नहीं करना चाहिये। एक बार अगर किसी के मन में यह बात आ गयी कि उसे मूर्ख बनाया गया है तो वह फिर आपकी पोस्ट की तरफ देखेगा भी नहीं।
भ्रमजाल फैलाकर सिंहासन पा जाते-दीपकबापूवाणी (bhramjal Failakar singhasan
paa jaate-DeepakbapuWani
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*छोड़ चुके हम सब चाहत,*
*मजबूरी से न समझना आहत।*
*कहें दीपकबापू खुश होंगे हम*
*ढूंढ लो अपने लिये तुम राहत।*
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*बुझे मन से न बात करो*
*कभी दिल से भी हंसा...
6 years ago
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