बारूद के ढेर चारों और लगाकर
हर समस्या के इलाज के लिए
नये-नयी चीजें बनाकर
आदमी में लालच का भूत जगाकर
वह करते हैं दुनिया में शांति लाने का दावा
बंद कमरों में मिलते अपने देश की
कुर्सियों पर सजे बुत
चर्चाओं के दौर चलते
प्रस्ताव पारित होते बहुत
पर जंग का कारवाँ भी
चल रहा है फिर भी हर जगह
होती कुछ और
बताते और कुछ वजह
जब सब चीज बिकाऊ है
तो कैसे मिल सकता है
कहीं से मुफ्त में शांति का वादा
बहाने तो बहुत मिल जाते हैं
पर कुछ लोग का व्यवसाय ही है
देना अशांति को बढावा
एक दुकान से खरीदेंगे शांति
दूसरा अपनी बेचने के लिए
जोर-जोर से चिल्लाएगा
फैलेगी फिर अशांति
जब फूल अब मुफ्त नहीं मिलते
तो बंदूक और गोली कैसे
उनके हाथ आते हैं
जहाँ से चूहा भी नहीं निकल सकता आजादी से
वहाँ कोहराम मचाकर
वह कैसे निकल जाते हैं
विकास के लिए बहता दौलत का दरिया
कुछ बूँदें वहाँ भी पहुंचा देता है
जहाँ कहीं शांति का ठेकेदार
कुछ समेट लेता है
जानते सब हैं पर
दुनिया को देते हैं भुलावा
न दें तो कैसे करेंगे शांति लाने का दावा
भ्रमजाल फैलाकर सिंहासन पा जाते-दीपकबापूवाणी (bhramjal Failakar singhasan
paa jaate-DeepakbapuWani
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*छोड़ चुके हम सब चाहत,*
*मजबूरी से न समझना आहत।*
*कहें दीपकबापू खुश होंगे हम*
*ढूंढ लो अपने लिये तुम राहत।*
*----*
*बुझे मन से न बात करो*
*कभी दिल से भी हंसा...
6 years ago
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