- आग को किसी तरह के सामान के नीचे नहीं रखना चाहिए और न उसे लांघना चाहिए, पैरों को आग पर नहीं रखना चाहिऐ और न ही कोई ऐसा कार्य करना चाहिए जिससे जीव हिंसा का भय हो।
- संध्याकाळ में भोजन भक्षण, यात्रा और विश्राम नहीं करना चाहिऐ, धरती पर लकीर नहीं खींचनी चाहिए और अपने गले से पहनी हुई माला को नहीं उतारना चाहिए।
- जल में मल-मूत्र, रक्त तथा विष आदि नहीं बहाना चाहिए, इससे पानी प्रदूषित हो जाता है, पर्यावरण पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
- जिस घर में कोई न हो वहाँ अकेले नहीं सोना चाहिऐ, सोये व्यक्ति को जगाना नहीं चाहिऐ रजस्वला स्त्री से बातचीत नहीं करना चाहिऐ। बिना आमंत्रण के किसी के यज्ञ में शामिल नहीं होना चाहिऐ।
- अग्निहोत्र में, गायों के निवास स्थान में, विद्वानों के समीप, वेद-शास्त्र आदि पड़ते समय और भोजन के समय अपना दाहिना हाथ ऊपर उठाएं(खाते समय बीच में उठाते रहें)।
शब्द तो श्रृंगार रस से सजा है, अर्थ न हो उसमें क्या मजा है-दीपकबापूवाणी
(Shabd to Shrangar ras se saja hai-DeepakBapuwani)
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*बेपर इंसान परिदो जैसे उड़ना चाहें,दम नहीं फैलाते अपनी बाहे।कहें दीपकबापू
भटकाव मन कापांव भटकते जाते अपनी राहें।---*
*दीवाना बना ...
4 years ago
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