कपिल देव की आई.सी.एल.अभी भी कोई कमाल नहीं कर पा रही है। इसकी वजह यह है कि कपिल अभी क्रिकेट को एक ऐसा खेल समझ रहे हैं जिससे व्यापार किया जा सकता है, जबकि उन्हें यह भी सोचना चाहिऐ कि यह लोगों के जजबात इससे जुडे हुए हैं और जब तक उनका इस्तेमाल नहीं किया जायेगा तब वह अपनी संस्था को लोगों में लोकप्रिय नहीं बना सकते।
कपिल देव ने अभी हाल ही में दुनिया भर की टीमों के पुराने और सेवानिवृत खिलाडियों को लेकर टीमें बनाईं और मैच करवाए. उनके बारे में देश के समाचार माध्यमों में उनको स्थान मिला पर खेलप्रेमियों ने उनको महत्त्व नहीं दिया इसका कारण यह कि उन टीमों के नाम देश के स्थानीय बडे शहरों के नाम पर रखे। शायद आयोजकों को लगा होगा कि बडे और प्रसिद्ध खिलाडियों की वजह से लोग टूट पड़ेंगे और उनकी दिलचस्पी की वजह से उनको आर्थिक लाभ मिलेगा। ऐसा हुआ नहीं।
कपिल देव और उनके साथी आज इस देश में क्रिकेट का स्वरूप देख रहे हैं उसके पीछे लोगों के मन में जो देश के प्रति जजबात हैं उसे नहीं देख रहे। कहने को यह बी.सी.सी.आई.की टीम है पर इसे भारतीय टीम भी कहा जाता है। कपिल ने १९८३ में जब इस टीम को शिखर पर पहुंचाया तो पूरा देश क्रिकेट का मुरीद हो गया। इसलिए नहीं कि क्रिकेट एक खेल है बल्कि इसलिए कि उनका देश उसमें विश्व विजेता है।
कपिलदेव सोच रहे हैं की स्टार खिलाडी लेकर अपना अभियाय चलते रहें तो गलती पर हैं, उन्हें नये खिलाड़ी जिनको अभी भारतीय टीम में जगह मिलने की आशा नहीं है अपने साथ लेकर अपनी टीम बनाने चाहिए। इतना नहीं अपने विदेशी मित्रों से कहकर हर देश में ऐसी टीम बनवानी चाहिए। वह अगर यह सोच रहे हैं आई।सी।सी।आई की इसी संस्था के माध्यम से वह उससे जुड़ जायेंगे तो गलती कर रहे हैं। उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी ऐसी संस्था बनानी होंगी। जब वह सभी देशों के बीच उनके बैनर तले मुकाबले होंगे तभी पूरे विश्व के आम खेलप्रेमियों का ध्यान उनकी तरफ ध्यान जायेगा। जब वहाँ खिलाड़ी अच्छा खेलंगे तब लोगों के स्टार भी बनेंगे। नये लड़के कम इनामी राशि में भी खेलने के लिए तैयार हो जायेंगे। वैसे भी आजकल क्रिकेट खिलाड़ी खेल से कम विज्ञापन से अधिक कमाते हैं। इसे ही कहा जाता है जजबातों को भुनाना। हालांकि इस चक्कर में हो यह रहा है कि इस प्रयास में लोगों पर वही खिलाड़ी जबरन थोपे जा रहे हैं जिनको अनफिट हुए पांच वर्ष से अधिक हो गए हैं। लोगों का कपिल को समर्थन भी इसलिए मिला कि लोगों को लगा कि कपिल अब नये स्टारों को लायेंगे पर ऐसा हुआ नहीं।
कपिल अगर विश्व में मौजूद क्रिकेट की नियंत्रक संस्थाओं (format) के स्वरूप में ही बढ़ना चाहते हैं तो नहीं लगता कि उनको कोई अधिक सफलता मिलने वाली है। वह शायद सोच रहे थे कि भारत के कुछ स्टार खिलाडी उनसे जुड़ जाएं तो वह आगे बढ़ें तो एक तो इतनी अधिक आर्थिक उपलब्धियाँ छोड़कर उनके पास आयेंगे नहीं और आ गए तो नयेपन की चाह रखने वाले लोग उनसे दूर हो जायेंगे। इसलिए कपिल देव को केवल क्रिकेट को खेल समझते हुए भी इस बात का ध्यान रखें कि अंतत: इसका आर्थिक लाभ लोगों के उसके प्रति मौजूद जजबातों को भुनाने में है। व्यावसायिक क्षेत्रों में आजकल यही हो रहा है। बात अगर है तो बस इतनी कि भारत के लोग थके खिलाडियों और आधे बूढे हो चुके अभिनेताओं की जगह नये चेहरे देखना चाहते हैं वह नही हो रहा है और जो ऐसा करेगा उसे सफलता मिलेगी। आज के भौतिक युग में किसी व्यक्ति को इस आधार पर कभी सम्मान नहीं मिलता कि उसमें अभिनय, कला और खेल में कितनी काबलियत है बल्कि उसकी आर्थिक उपलब्धियाँ ही देखीं जातीं हैं।
शब्द तो श्रृंगार रस से सजा है, अर्थ न हो उसमें क्या मजा है-दीपकबापूवाणी
(Shabd to Shrangar ras se saja hai-DeepakBapuwani)
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*बेपर इंसान परिदो जैसे उड़ना चाहें,दम नहीं फैलाते अपनी बाहे।कहें दीपकबापू
भटकाव मन कापांव भटकते जाते अपनी राहें।---*
*दीवाना बना ...
4 years ago
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