इंडियन मेडिकल एसोसियेशन I.M.A. ने योग गुरु रामदेव के इस बयान का विरोध किया है जिसमें उन्होने कहा था की डाक्टर लोगों की बीमारियों को बढाचढा का बताते हैं। ई।M।आ। ने बाबा को चुनौती भी दी है कि वह अस्पतालों में जाकर केंसर पीडितों का इलाज करके बताएं।
यहाँ पहले स्पष्ट कर दूं कि मैं प्रतिदिन योग साधना करता हूँ पर बाबा रामदेव का मैं शिष्य नहीं हूँ पर वह जिस तरह लोगों में योग साधना और अन्य विषयों पर चेनता जागृत कर कर रहे हैं उसका समर्थक हूँ और कुछ ऐसे विषय भी हैं जिनसे मेरी सहमति नहीं होती पर इसके बावजूद मानता हूँ कि वह इस भारतीय समाज के लिए जो कर रहे हैं वह बहुत आवश्यक है। इसलिए जब मैंने I.M.A.आ।द्वारा उनकी आलोचना पढी तो मुझे लगा कि शायद वह उनकी bat समझ नहीं पाए। बाबा ने जो कहा है वही आम लोग भी कहते हैं और उन्होने तो केवल दोहराया भर है।
ऐसा नहीं है कि पहले लोग बीमार नहीं पड़ते थे पर अपने गली मोहल्लों में ही इलाज कराकर सही होते और आज भी लोग उनके पास जाते हैं। वजह यह है कि छोटी-मोटी बीमारी वही ठीक हो जाती है। अगर अधिक पढे-लिखे डाक्टर होते हैं तो तमाम तरह के टेस्ट कराने में लोगों का समय और पैसे बर्बाद कर देते हैं। हर बार बीमारी बड़ी होने का अंदेशा डाल देते हैं और आदमी उनके पास जाने से घबडाता है। उच्च रक्तचाप और मधुमेह तो वैसे भी दिमागी तनाव से होते हैं और अगर किसी को अपनी इन बीमारियों के बारे में पता चले तो वैसे ही उसका मनोबल गिर जाता है। इधर डाक्टर दवाएं लिखते जाते और कहते भी जाते-''आप चिंता मत करो'।
मधुमेह के मरीज जो मरीज खाने के पहले और बाद गोली लेने के चिंता करते हैं और चिंता तो वैसे भी शरीर की दुश्मन मानी जाती है-ऐसे में यह समझ में नहीं आता कि गोली क्या काम करेगी। चिकित्सा विज्ञान कहता है कि हमारा शरीर बहुत लोचदार है और कई तरह के समायोजन स्वयं ही करता है अगर गोली लेने के बाद किसी को खाना पचा तो वह गोली लेने के कारण पचा या 'अब खाना पच जायेगा' इस चिता से मुक्त होने के कारण पचा कोई नहीं बता सकता।
यह सब दिमागी खेल है यह तो सभी मानते हैं। फिर I.M.A. के पास इस बात की क्या गारंटी है कि देश के सभी डाक्टर दूध के धुले हैं और अपने व्यवसाय के लिए बीमारी को बढाचढा कर नही बताते। इसलिए उन्हें बाबा रामदेव की आलोचना से पहले देश में जो डाक्टरों के बारे में धारणा व्याप्त है उस पर विचार करना चाहिए।
बाबा रामदेव को कैसर अस्पतालों में जाकर मरीजो को इलाज करने की चुनौती देने से पहले तो उनको इस बात का जवाब देना चाहिए कि क्या वह अपने अस्पतालों में आये मरीजों के अलावा कहीं किसी का इलाज करने जाते हैं?क्या उनको जब पता लगता है कि दूर-दराज के गावों में कोई कैसर का मरीज है तो वहाँ जाते हैं? वैसे भी जिसको डाक्टरों ने कैंसर बता दिया तो उसका मनोबल तो वैसे ही टूट जाता है और बिना मनोबल के योग साधना शुरू कोई नहीं कर सकता। अगर वह बाबा को यह कहकर चुनौती देते हैं कि 'वह तो योगी हैं और उन्हें जाना चाहिए' तो मैं उनको बता तूं जिस भारतीय दर्शन की ईजाद योग है वह यह भी कहता है कि अगर 'कमल जल से दूर है तो सूर्य भी उसको जीवन प्रदान नहीं कर सकता'। आदमी के जीवन के लिए यह मनोबल भी जल की तरह है और बाबा को चुनौती देने वाले अपने यहाँ से ही ऐसे मरीज जिनके बारे में डाक्टरों को पता लगता है कि उसे कैंसर है तो उसे बिना बताये ही बाबा रामदेव के शिविर में ले जाएं और अपनी दवाईयां देकर वहाँ योगासन के साथ उसका इलाज करें तब उनकी विश्वसनीयता बढेगी-जैसा कि खुद I.M.A.ने कहा भी है कि वह योग के प्रभाव को स्वीकार करती हैं।
शब्द तो श्रृंगार रस से सजा है, अर्थ न हो उसमें क्या मजा है-दीपकबापूवाणी
(Shabd to Shrangar ras se saja hai-DeepakBapuwani)
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*बेपर इंसान परिदो जैसे उड़ना चाहें,दम नहीं फैलाते अपनी बाहे।कहें दीपकबापू
भटकाव मन कापांव भटकते जाते अपनी राहें।---*
*दीवाना बना ...
4 years ago
5 comments:
दीपक जी नमस्कार्, 2 माह हुए मैने रामदेव जी के शिविर मे भाग लिया था,वहां एक लेडी डाक्टर आतीं थी जिनका पूरा शरीर कैंसर की गांठो से पटा हुआ था॥उन्होने स्वयं ये स्वीकारा कि योग द्वारा अब उनकी गांठे घुल रही हैं……और सबूत क्या चाहिये लोगों को?
विचारो से मै सहमत हूँ .आप सही फरमा रहे है कि आलोचना ना कर आजमा के देख लेना चाहिए . बेबकूफ़ वो है जो आचार्य रामदेव कि आलोचना करते है .योग द्वारा कई असाध्य बीमारिओ का इलाज संभव है .
बिल्कुल सही बात लिखी है।आप के लेख से सहमत हूँ।सिर्फ अलोचना कर देना नासमझी है।
अरे तो भैया इन लोगों को अपने पेट पे लात पडती दिखाई दे रही है न इसलिये ये सब हो रहा है ।
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