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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

1/24/08

हिन्दी के पुरुष लेखकों के सम्मान के लिए महिलाओं का अलग वर्ग रखना जरूरी

इस समय अंतर्जाल पर लिखे जाने वाले हिन्दी ब्लोग के संबंध में जो तथाकथित रूप से जो सम्मान घोषित हुए उनमे महिलाओं का मनोबत बढाने के बात हुई और महिलाओं ने ही इसका विरोध हुआ कि उनके लिए कोई अलग वर्ग बनाया जाये। इसके बावजूद उनके तर्क पर कोई ध्यान नहीं दे रहा क्योंकि वाद और नारों पर चलते इस समाज ने तर्क बहुत काम सुने जाते हैं।

आज यह संयोग ही है कि मैं इस विषय पर लिखने की सोच रहा था कि उससे पहले अपने ब्लोग देखते हुए एक अन्य ईमेल पर गया, जहाँ मैं बहुत कम जाता हूँ । वहाँ अभिव्यक्ति की संपादिका पूर्णियां बर्मन जी का एक सन्देश मिला जिसमें उन्होने मेरा एक व्यंग्य अपनी पत्रिका में छपने की सूचना दी थी। अगर यह सन्देश नहीं भी मिलता तो भी मैं अपनी बात उनसे ही शुरू करता। प्रसंग यही था कि क्या वाकई अंतर्जाल पर महिलाओं के मनोबल को बढाने का काम हो रहा है या इस भय से उनको अलग किया जा रहा है कि उनकी वजह से कुछ तथाकथित बडे ब्लोगर या लेखक सम्मानित होने से रह जायेंगे। सत्य तो यह है कि अंतर्जाल पर हिन्दी सजाने और संवारने के लिए जो काम महिलाओं ने किया है वह पुरुष समुदाय से कई कदम आगे हैं। उनके लेखन के विषय पुरुषो से कहीं अधिक सुरुचिपूर्ण और प्रस्तुतीकरण में परिपक्वता है। कम से कम मुझे तो यही लगता है। हालांकि हिन्दी के व्यापक क्षेत्र को देखते हुए अभी भी महिलाओं की अंतर्जाल पर संख्या नगण्य है पर जितनी है वह महत्वपूर्ण ध्यान देनें योग्य है.

मेरी रचनाएं अभी तक तीन अंतर्जाल पत्रिकाओं पर छप चुकी हैं इनमें 'हिन्दी नेस्ट' और ''अभिव्यक्ति'' का संपादन कार्य महिलाओं के जिम्मे हैं। मेरा अंतर्जाल पर लेखक के रूप में प्रवेश ही महिलाओं द्वारा अपने संपादन का दायित्व अच्छी तरह निभाने के कारण हुआ है। सद्दाम को फांसी देने के संबंध में मेरा आलेख हिन्दी नेस्ट में प्रकाशित हुआ था जो कि अंतर्जाल पर मेरी पहले पोस्ट थी। उसके बाद अभिव्यक्ति-अनुभूति में व्यंग्य और कविता छपी। यहाँ मैं यह भी बता दूं कि आज से डेढ़ वर्ष पूर्व मेरे एक कवि मित्र ने मुझे अभिव्यक्ति का पता दिया था और वहीं नारद को देखते हुए आगे बढ़ जाता था और सोचता कि संपादिका ने इनके लिए अपनी पत्रिका पर कोई ऐसी जगह बना रखी है जहाँ बैठकर यह लोग चर्चा करते हैं। बहरहाल बाद में भी संपादिका पूर्णिया बर्मन जी ने मेरे ब्लोग से रचनाएं लीं। दो पत्रिकाओं का जिस तरह संचालन कर रही हैं उसे देखकर मुझे ताज्जुब होता है और मेरे लिए यह कहना मुशिकल हो जाता है कि महिलाओं का मनोबल बढाने के लिए पुरुषों के किसी खास प्रकार के कार्य करने का दिखावा करने की जरूरत है-केवल खामोशी से उनकी सक्रियता देखने के अलावा उन्हें और कुछ करने की जरूरत नहीं है - क्योंकि इसके उलट महिलाएं ही यहाँ मनोबल बढा रही हैं।

जो ऐसे महिलाओं का मनोबल बढाने की बात कर रहे हैं वह केवल अपने प्रचार के लिए कर रहे हैं ताकि अंतर्जाल के बाहर अपने आपको ब्लोगरों का नेता साबित कर सकें। क्योंकि महिलाएं जिस मनोयोग से अंतर्जाल पर पत्रिकाओं के संपादन और ब्लोग लेखन में जिस तरह अपने प्रयास कर रहीं है उनका मनोबल बढाने का नाटक करने की बजाय अपने आपको समझाने की जरूरत है कि वह वाकई बहुत अच्छा काम कर ही हैं और पुरुष समुदाय को उनसे सीखान चाहिऐ.

ब्लोग पर महिलाओं की उपस्थिति कम है पर जितनी है उनकी पोस्टों की गुणवता और दूसरे ब्लोग लेखकों का मनोबल बढाने के लिए कमेन्ट लगाने की सक्रियता को देख कर तो मुझे लगता है कि वह उसमें भी बहुत आगे हैं। अच्छे ब्लोग लेखक के बारे में मेरा विचार है कि 'अच्छा लिखने वाला और अपने साथियों का कमेन्ट लगाकर उनका मनोबल बढाने वाला ही अच्छा ब्लोगर है। केवल एक चीज से कोई अच्छा ब्लोगर नहीं माना जा सकता है'। अगर आप मुझसे इस समय देश के तीन हिन्दी ब्लोगरों के नाम पूछेंगे तो उसमें सबसे पहले तीन महिलाएं ही हैं। वह केवल न अच्छा लिखतीं है बल्कि दूसरों का हौंसला भी बढ़ाती है। जो वरिष्ठ ब्लोगर हैं और उनके विरुद्ध मैंने ही मोर्चा खोला था पर वह इस बात को महसूस करते हैं-क्योंकि उनकी काबलियत को इस मामले मैं मैं भी मानता हूँ। उन्होने एक कथित सम्मान में अपनी भुमिका निभाई थी और मेरे सहित कुछ लोगों ने उकी कार्यप्रणाली पर आपत्ति उठाई थी. यह अलग बात हैं कि वह खुद अपनी सफाई में किसी वरिष्ठ ब्लोगर को सम्मानित करने की मजबूरी दिखाने की बजाय महिलाओं के मनोबल बढाने की बात कर गए और उसका उलटा प्रभाव पडा।

अब कुछ महिला ब्लोग लेखिकाओं के इस विचार की बात करें जिसमें वह यहाँ अपनी उपेक्षा की बात करतीं है। मैं उनसे सहमत नहीं हूँ। हो सकता है पुरुष ब्लोगरों की अधिकता और महिलाओं के ब्लोग पर सावधानी से अपनी बात लिखने की उनकी सहज भावना की वजह से ऐसा उनको लगता है। पुरुष ब्लोगर एक दूसरे के ब्लोग पर कभी-कभी मजाक और असहमति में भी कमेन्ट लिखते हैं पर जब महिलाओं के ब्लोग पर होते हैं तो उन्हें कई बार अपने संस्कारों की वजह से सतर्कता रखनी पड़ती है। जहाँ तक पाठक संख्या का सवाल है तो करीब सबका के एक जैसा ही हाल है अत: उन्हें अपने साथ उपेक्षित व्यवहार की शिकायत नहीं करना चाहिऐ। जहाँ तक लिखने के स्तर का सवाल है तो कम- अधिक सभी हैं चाहे महिला हों या पुरुष। इसके अनुपात की दृष्टि से अच्छी ब्लोग लेखिकाओं की संख्या पुरुषो के अनुपात से अधिक है। अगर इस हिन्दी ब्लोग जगत में अच्छे लेखन के मामले मुझे महिलाओं की चुनौती का सामना नहीं करना होता तो शायद मेरा सारा रास्ता आसान हो जाता। मैं एक लेखक हूँ और हमेशा वास्तविक धरातल पर खडा रहता हूँ। मुझे कौन सर्वश्रेष्ट ब्लोग के लिए वोट चाहिए, पर क्योंकि ऐसे सम्मानों पर व्यंग्य और हास्य कविताएँ लिखता हूँ तो सोचता हूँ कि कम से कम उन्हें अपने विचारों से अवगत कराता चलूँ। मैं कई बार महिला ब्लोगरों की पोस्ट पढता हूँ तू मुझे लगता है कि उनसे बेहतर लिखने की चुनौती मेरे सामने हैं।

हाँ एक आग्रह करूंगा कि वह अपने लिए अलग श्रेणी का विरोध न करें। वजह इससे तो कुछ वरिष्ठ ब्लोगरों को सम्मान नहीं मिल पाएगा क्योंकि महिलाओं का लेखन और सक्रियता कहीं पुरुषों से अधिक है। पुरुषों का मनोबल बढाने के लिए उन्हें अलग से पुरस्कार देना आवश्यक है, अगर सब निराश होकर भाग गए तो आप लोगों को पाठक कहाँ से मिलेंगे और अपने शब्द कमेन्ट के रूप में बिखेरने के लिए ब्लोगर कहाँ मिलेंगे। उन्हें पुरस्कार अलग से मिलने से मुझे हास्य कविता लिखने का अवसर मिलता है। अगर आपके ब्लोग उनमें शामिल होंगे तो मुझे असुविधा होगी क्योंकि अपने से अधिक योग्य महिला हो या पुरुष उस पर हास्य लिखना अपनी फिल्म पिटवाना है। कम से कम पुरुष ब्लोगरों के पुरस्कार देखकर मेरे मन में हास्य का भाव तो पैदा होता है क्योंकि वह वाकई महिला ब्लोगरों से बहुत पीछे हैं। मेरे मन में बात थी वह सबके सामने रख दी, मैं कोई ढोंग नहीं करता, इसलिए पुरस्कार या सम्मान पर कोई हास्य कविता लिखूं उसे कदापि अपनी तरफ न लें-ऐसा मेरा आग्रह है। मैं कोइ अतिरिक्त सम्मान का प्रदर्शन नहीं कर सकता क्योंकि अपने घर में भी महिलाओं से ऐसे ही सहज ढंग से बात करता हूँ और किसी महिला के आत्म सम्मान को ठेस पहुचाना मुझे कभी अच्छा नहीं लगता पर पुरुष समुदाय उनकी आड़ ले रहा है यही उनको बता रहा हूँ। मैं तो वैसे भी अपने स्तर के ब्लोगरों से सम्मान नहीं ले सकता क्योंकि यह मुझे मजाक लगता है. वह दे सकते हैं तो बस अपना प्यार. इसलिए कहता हूँ कि अगर अंतर्जाल पर हिन्दी लिखने वाले पुरुषों का सम्मान देकर मनोबल बढाना है तो महिलाओं का वर्ग अलग रखना जरूरी है क्योंकि योग्यता के आधार पर सब पुरस्कार तो उनके पास चले जायेंगे.

2 comments:

Rachna Singh said...

deepak jii
kehaan kehaan sae topic laatey haen !!!!!!!!!!!

Tarun said...

baat niklegi to phir door talak jaayegi...aisa bhi hota hai socha na tha.

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