28 दिसंबर 2006 को मेरे दिमाग में ब्लाग लिखने का विचार आया था। स्मृति पटल पर उस समय की यादें तो हैं पर कैसीं? यह खुद नहीं जानता? उस समय नारद और अक्षरग्राम द्वारा शायद ब्लाग पर लिखने के लिये वर्डप्रेस का ब्लाग दिया गया। उसे नहीं लिख पाया। दस पंद्रह दिन थोड़ा प्रयास किया होगा, पर कुछ समझ में नहीं आया। एक दिन एक ऐसे ब्लाग पर नजर पड़ गयी जिसका विषय मुझे पसंद आया। उस ब्लागर का नाम याद नहीं पर समय मिलने पर उसकी तलाश करता हूं। हुआ यह कि एक धर्म प्रवर्तक के कार्टून का विरोध करने के लिये उस समाज के लोग प्रदर्शन कर रहे थे। भारत में कई जगह प्रदर्शन हुए और उसके लिये निकाले गये जुलूस की पृष्ठभूमि पर उसमें लिखा गया था। तब मुझे लगा कि ब्लाग अभिव्यक्ति का दिलचस्प माध्यम बनेंगे।
ब्लाग बनाने का प्रयास किया पर सफल नहीं हुआ। फिर बीच में प्रयास छोड़ भी देता । इस तरह एक दो माह चलता रहा। तब कुछ ब्लाग दिख गये और ब्लाग स्पाट का ब्लाग बना डाला। यही वह ब्लाग है जो सबसे पहले बना पर लिखने का समझ में नही आ रहा था। फिर पता नहीं कैसे वर्डप्रेस का ब्लाग बना डाला। उस पर कृतिदेव में लिखता गया। बीच में छोड़ दिया।
अगर देखा जाये तो उस समय ब्लाग किस भाषा में है कोेई समझ ही नहीं सकता है केवल मेरे। अफरातफरी में ब्लाग स्पाट के ब्लाग अ पर नजर पड़ गयी। तब समझ में आया कि यही वह टूल है जिससे हिंदी मेंं लिखा पढ़ा जा सकता है। मैंने उस पर दो तीन क्षणिकायें लिखीं और वहां प्रकाशित कर दी। हिंदी टाईप का अभ्यास अधिक था पर अंग्रेजी का इतना नहीं था। इसलिये लगा कि यह अपने बूते का नहीं है। सो क्षणिकायें लिखने लगा पर दूसरे ब्लाग पर। अपने दो मुख्य ब्लागों दीपक भारतदीप का चिंतन और दीपक बापू कहिन पर कृतिदेव में लेख लिखता। फिर रोमन में हिंदी में लिखने का अभ्यास बढ़ने लगा तो लेख भी लिखे।
उस समय वर्डप्रेस पर लिखने पाठक तो मिलने लगे पर इतने नहीं। उस समय हिंदी के सभी ब्लाग एक जगह दिखाने के लिये एक ही फोरम था। उस पर जाने के इरादे से ही मैंने ब्लाग बनाया था पर वहां अब इसकी सूचना नहीं दी कि अब यूनिकोड में भी लिख रहा हूं। वजह्! मैं नौसिखिया था तो नारद वाले भी थोड़ा सीख चुके थे पर दोनों के बीच संवाद में गड़बड़ चल रही थी। मैंने उनको अपने नौसिखियेपन से परेशान किया था इतना कि उन्होंने अब कोई ईमेल पर उसे बैन करने की धमकी दे डाली थी। आज हालत यह है कि आप कोई हिंदी में ब्लाग बनाईये तो सही! नारद और चिट्ठाजगत उसे अपने यहां टांग देते हैं आपको भी बाद में पता लगता है। इसी नारद फोरम से जुड़े लोग आज मेरे मित्र हैं।
खैर, जब वर्डप्रेस के ब्लाग पर निरंतर लिखा तब अनेक ब्लाग लेखकों ने उसे डैशबोर्ड पर देखा और नारद पर आने का आग्रह किया। तब साहस कर नारद को ईमेल भेजा। उसके बाद तो दोस्तों की संख्या बढ़ती रही। देखा जाये तो मई 2007 में सही ढंग से लिखना प्रारंभ हो पाया
चिट्ठाजगत की संख्या को सही मायने तो यह 2879वां पाठ हैं मेरे कुल 21 ब्लाग हैं जिनमें से ब्लागवाणी पर केवल ब्लाग स्पाट के 13 ब्लाग ही दिखते हैं। वर्डप्रेस के ब्लाग मैंने वहां से हटवा लिये क्योंकि उन पर अब मैं इन्हीं 13 ब्लाग स्पाट पर लिखे गये पाठों को संशोधित कर रखता हूं। यह सिलसिला पिछले तीन माह से ही शुरु किया है। ब्लाग स्पाट और वर्डप्रेस के ब्लागों में क्या अंतर है यह आज तक नहीं समझ पाया? ब्लाग स्पाट के ब्लाग पर केवल ब्लाग लेखकों का ही आगमन होता है। आम पाठक का आना बहुत ही कम है जबकि वर्डप्रेस के ब्लाग पर निरंतर पाठकों का आगमन होता है। ऐसा लगता है कि ब्लाग स्पाट पर पाठ लिखना मतलब अपनी डायरी लिखना है और वर्डप्रेस पर पत्रिका प्रकाशित करना। मैंने ब्लाग स्पाट पर स्टेट काउंटर देर से लगाया था इसलिये पाठक संख्या का अनुमान तो सही नहीं है पर ऐसा लगता है कि मेरे ब्लागों पर ढाई से पौने तीन लाख से तक पाठकों का आगमन हो चुका है। प्रतिदिन पांच से सात सौ पाठक संख्या है पर यह स्थिर बनी हुई है। इसमें वृद्धि नहीं हुई अलबत्ता कभी कम जरूर हो जाती है। ऐसे तीन या चार दिन आये हैं जब यह संख्या 1000 पार कर गयी।
अपनी उपलब्धियों की चिंता से अधिक मेरे अंदर यह जिज्ञासा है कि आखिर यह ब्लाग जगत भविष्य में क्या शक्ल लेगा? अगर समाचार पत्र पत्रिकाओं और टीवी चैनलों की बात करें तो उसके मुकाबले इन हिंदी ब्लागों पर अधिक स्वतंत्र रूप से लिखा जा रहा है। अनेक ब्लाग लेखक तो बहुत ऐसी बातें लिख जाते हैं जिनको टीवी चैनल वाले न तो बोल सकते हैं न ही अखबार वाले लिख सकते हैं। एक लेखक के रूप में जहां लिखने का मजा लेता हूं वहीं पढ़ने में भी नहीं चूकता। अनेक लोगों के पाठ न केवल दिल को छू जाते हैं बल्कि सोचने और लिखने के लिये प्रेरित भी करते हैं।
एक मजेदार बात यह है कि आप अगर सोचते हैं कि किसी घटना या फिल्म पर सबसे अलग राय रखते हैं तो यहां पढ़ने पर आपका यह भ्रम टूट भी सकता है क्योंकि वैसे सोचने वाले इस देश में अन्यत्र भी हैं पता लग जाता है। होता यह है कि टीवी चैनल और समाचार पत्र पत्रिकाओं ने हर विषय के लिये सोचने और बोलने की अपनी एक सीमा तय कर रखी है। देखा जाये तो सभी एक तयशुदा नक्शे में घूमते हैं। इसलिये किसी घटना या विचार पर उनका सोच अलग से नहीं दिखता। इसके विपरीत ब्लाग लेखक ऐसे किसी दायरे में बंधकर नहीं रहता और वह ऐसे विचार रख जाता है जो व्यवसायिक प्रतिबद्धताओं के कारण सीमा में बंधे लोगों के लिये संभव नहीं है।
लोग आपस में घटनाओं और समाचारों पर बहस करते हुए अनेक बातें कहते हैं पर प्रचार माध्यम अपनी सीमाओं में रहते हुए उनको उनको नजरअंदार करना ही ठीक समझते हैं। संभवतः उनको यह लगता है कि आम आदमी के विचारों का प्रंतिबिंब अपने माध्यम में प्रदर्शित करने की बजाय उस पर अपना ज्ञान झाड़ा जायेे। ब्लाग लेखक किसी बंधी बंधाई लीक पर चलने का नहीं सोचते और इसलिये वह ऐसी बातें कह जाते हैं जो किसी अन्य माध्यम पर नहीं मिलती। यही वह प्रवृत्ति है जो हिंदी ब्लाग जगत को आगे तक ले जायेगी। आम पाठक या दर्शक प्रचार माध्यमों से इसलिये जुड़ा है क्योंकि उसके पास कोई विकल्प नहीं हैं। आप हाथ में रिमोट लेकर कितने भी समाचार चैनल बदलिये सभी जगह वही व्यवसायिक कार्यक्रम। अगर कोई फिल्म रिलीज हुई और आपकी दिलचस्पी नहीं है और आपके सामने जो चैनल चल रहा है उसके प्रचार वाला कार्यक्रम चला रहा है तो आप रिमोट से दूसरे समाचार चैनल पर जाईये तो वहां भी वही आता दिखेगा। यही हाल फिल्म स्टार के जन्मदिन का भी होता है। मतलब यह है कि सभी चैनल अलग अलग हैं पर उनमें इस बात पर एक अघोषित सहमति है कि दर्शक को कार्यक्रम के मामले में आजादी नहीं लेने देंगे। उनके विज्ञापन दाता तो एक ही है इसलिये टीवी चैनल वाले इस बात का ध्यान रखते हैं कि दर्शक कार्यक्रमों के चयन में आजाद दिखे पर हो नहीं। यही हाल समाचार पत्र पत्रिकाओं का है।
कहने तात्पर्य यह है कि ब्लाग जगत पर लिखने की आजादी है जो पाठक के मन को प्रसन्न कर सकती है पर इसके साथ दिक्कत यह है कि यह न तो अखबार की तरह आंगन में पड़ा मिलता है कि उठाकर पढ़ने लगें और न ही यह टीवी चैनल की तरह है कि सोते हुए बदल सकें। फिर जिनमें कंप्यूटर की आदत है उनकी दिलचस्पी पढ़ने में कम ही है। फिर उनको जानकारी भी कम है। आम ब्लाग लेखक कोई हीरो या प्रसिद्ध पत्रकार नहीं होते कि लोग उनको ढूंढते हुए आयें जबकि उनमें ही यह सामर्थ्य है कि वह हिंदी का अंतर्जाल धारा को बनाये रख सकें क्योंकि उनमें ही नया,मौलिक तथा आधुनिक सृजन का जो भावनायें दिखाई देती हैं वह गद्गद कर देती हैं। मेरे दिमाग में तो यह बात है ही नहीं कि ब्लाग लिख रहा हूं बल्कि सोचता हूं कि देखें तो सही आखिर यह हिंदी ब्लाग जगत कब अपना शिखर प्राप्त करता है।
सृजनशील,मौलिक तथा मस्त भाव से लिखने वाले अनेक ब्लाग लेखक हैं जो वाकई दिल खुश कर देते हैं और उनकी कामयाबी मुझे बहुत प्रिय होगी। वह दिन जर्ब आम ब्लाग लेखक जगत लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचते हुए दिखेंगे मुझे प्रसन्नता प्राप्त होगी। वह दिन तब होगा जब आम ब्लाग लेखक के लिखे पाठ की चर्चा आम पाठक के मूंह से अनेक जगह वैसे ही होगी जैसे आज किसी वक्तव्य, संपादकीय या समाचार की तरह होती है। मेरे अंदर सफलता के प्रति सामूहिक भावना इसलिये होती है क्योंकि मुझे लगता है कि आप जब उस समूह का हिस्सा होते हैं तो आपको भी कुछ फायदा अवश्य होता है।
मैं जिस ब्लाग को पसंद करता हूं उसे वर्डप्रेस के ब्लाग पर लिंक देता हूं क्योंकि मुझे अभी तक यही लगता है कि उन पर आम पाठक का आना अधिक है। इसके लिये एक ही उद्देश्य होता है कि अगर हमारे ब्लाग पर आकर कोई दूसरे का ब्लाग पढ़कर प्रभावित होता है तो उसका श्रेय कुछ अपने पास भी जाता है। दो वर्ष पूरे होने पर मुझे नहीं लगता कि मैंने कोई उपलब्धि प्राप्त की है पर मित्रों के बीच बने रहने का भी अपना एक सुख होता है और इस अवसर पर उनकी सफलता की कामना करता हूं।
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यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकाएं भी हैं। वह अवश्य पढ़ें।
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.राजलेख हिन्दी पत्रिका
3.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका
4.अनंत शब्दयोग
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
शब्द तो श्रृंगार रस से सजा है, अर्थ न हो उसमें क्या मजा है-दीपकबापूवाणी
(Shabd to Shrangar ras se saja hai-DeepakBapuwani)
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*बेपर इंसान परिदो जैसे उड़ना चाहें,दम नहीं फैलाते अपनी बाहे।कहें दीपकबापू
भटकाव मन कापांव भटकते जाते अपनी राहें।---*
*दीवाना बना ...
5 years ago
8 comments:
bahutt -bahut badhai! aage bhi likhte rahe!
बधाई दीपक जी..
मैंने भी 30 नवंबर 2006 में ब्लौग लिखना शुरू किया था.. उस समय मैं नारद या किसी भी ब्लौग अग्रीगेटर को नहीं जानता था और ना ही किसी हिंदी चिट्ठाकार को मगर फिर भी ना जाने कहां से हिंदी में लिखने का शौक जाग गया था.. और मैं हमेशा से ही यूनी कोड का ही प्रयोग करता आया हूं.. 2006 में हिंदी में यूनी कोड में कैसे लिखते हैं इसे सीखने के लिये मेरे 2 दिन बरबाद हुये थे.. खुशी है कि कम से कम आज के लेखकों के साथ यह दिक्कत नहीं है..
देखिये आपके साथ मैं भी यादों में बह गया.. :)
खोज परक आलेख के लिए शुक्रिया
दो वर्ष पूरे करने की बधाई। ईस्वर कर आप २० वर्ष पूरे करें।
२ वर्ष पुरे करने पर बधाई स्वीकारें.
bahut badhai
सर हमारी भी बधाई स्वीकार करेंइ
Congrats!! Bahut bahut badhai... aap ne blogging ke 2 warsh poorekiye... is baat se mujeh yeh khayal aaya ki mujhe bhi jaanna chahiye ki mujhe kitna samay ho gaya hai blogging karte karte..!! hee hee!!
Khas kar yeh baat achhi lagi pe aap apne pasand ki blogs ko link karte hai. yehi bhawna hum sabhi barkarar rakhe to miljul ke safar taye kiys ja sakta hai.
Aaap issi tarha likhte rahe!!
Tosha
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