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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

10/23/09

धन पचाने का भी मंत्र होना चाहिए-हास्य व्यंग्य (dhan pachane ka mantra-hasya vyangya in hindi)

उस दिन एक संत को हमने पेट में अन्न पचाने का मंत्र बताते हुए सुना। वह सुबह, दोपहर और रात को भोजन करने से पहले और बाद में जाप किये जाने मंत्र बता रहे थे। हम भी बैठे प्रवचन सुन रहे थे। उसी समय हमारे दिमाग में एक प्रश्न आया कि ‘क्या धन कमाने से पहले और बाद में पचाने के लिये भी कोई मंत्र होगा।’
कुछ देर बाद उन्होंने लक्ष्मी को अपने घर बुलाने का मंत्र भी सुनाया। तब हमने सोचा कि जब धन को लाने का मंत्र बताया है तो उसे पचाने का मंत्र भी बतायेंगे। पूरे प्रवचन समाप्त हो गये पर ऐसा कोई मंत्र सुनाई नहीं दिया। मन में उत्सुकता ओर जिज्ञासा का भाव बना रहा। जब कार्यक्रम समाप्त हुआ तो अपने एक सत्संगी से पूछा‘-भई, कोई धन पचाने का भी मंत्र होता है।’
उन सत्संगी ने पहले तो हमें घूर कर देखा और फिर पूछा-‘तुम्हारा स्वास्थ्य कैसा है? इधर क्या सुबह पीकर सत्संग सुनने आये हो? ऐसे उल्टे सीधे सवाल करने का मतलब तो यही है कि तुम्हें मजाक सूझता है। भला धन भी पचाने की चीज है। जिसके पास धन है वह हर तरह से समर्थ हो जाता है।’’
इधर हमने भी तमाम तरह की किताबें छान मारी पर कहीं धन पचाने का मंत्र नहीं मिला। ताज्जुब यह देखकर हुआ कि लोग धन को पचाने का कोई मंत्र चाहते भी नहीं है। इधर समाज की जो हालत देखते हैं तब लगता है कि इसका भी कोई मंत्र होना चाहिए।
हमारे ताऊ कहते थे कि धन और अन्न हरेक को हजम नहीं होता। अधिक अन्न से आदमी बीमार पड़ता है तो सभी देखते हैं पर अधिक धन जिसका दिमाग खराब कर दे उसको कोई कोई अनुभव करता है। एक समय था जब सड़क पर निकलते थे तो ऐसा नहीं लगता कि किसी से डर है पर आजकल हालत दूसरे हैं। साइकिल पर हों या स्कूटर पर यह भय रहता है कि किसी मोटर साइकिल या कार वाले से टक्कर हो तो चोट अपने को लगे या हमारी गाड़ी को तो ठीक है पर दूसरे का कुछ बिगड़ना नहीं चाहिए। ऐसा कोई दिन नहीं होता जब मोटर साइकिलों और कार वालों का आपसी झगड़ा न देखने को मिलता हो। आदमी के पास इतना अधिक धन पास आ रहा है पर जमीन तो उतनी है इसलिये आदमी सड़कों पर अतिक्रमण कर रहा है। चार पहिया वाली गाड़ियां बढ़ी पर सड़कें छोटी होती जा रही हैं। ऐसे में टक्करें तो हंांगी। ऊबड़ खाबड़ सड़कों पर कब तक आदमी गााड़ियां चलाते हुए अपना दिमागी संतुलन बनाये रख सकता है। ऐसे में किसी की नयी कार है तो समझ लीजिये उसे थोड़ी भी टक्कर अपनी अमीरी पर दाग की तरह लगती है और वह दूसरे पर हाथ मारकर उसे साफ करने पार उतारु हो जाता है। सड़कों और शहरों का सच सभी जानते हैं पर याद नहीं रखते। देश के हर शहर का अखबार उठाकर देख लीजिये। सड़क, पानी बिजली और कानून व्यवस्था की शिकायतों से भरा पड़ा मिलेगा। एक तरह से संक्रमण काल मान सकते हैं। कहते हैं कि संक्रमण काल में धीरज रखना चाहिये पर लोग हैं कि आक्रामक हो रहे हैं। इतना धन है कि उनको लगता है कि हम चाहे जो खरीद सकते हैं। इसलिये किसी की थोड़ी गलती पर अपनी शक्ति का प्रदर्शन किये बिना उन्हें चैन नहीं पड़ता।
उस दिन का वाक्या भूले नहीं भूलता। गैस के चूल्हे की मरम्मत करने वाला एक लड़का अपनी साइकिल पर साजोसामान के साथ जा रहा था। रेल्वे क्रासिंग पर फाटक बंद था। वहां एक कार साइकिल पर चल रहे लड़के के एकदम आगे रुकी। लड़का कोशिश करते हुए भी उसको पीछे से टक्कर मारने से नहीं बच सका। टक्कर कोई जोरदार नहंी थी। लड़का साइकिल उठाकर कार से दूर खड़ा होकर फाटक का इंतजार करने लग गया। इधर कार वाला बाहर निकला। उसने इशारा कर लड़के को अपने पास बुलाया और आराम से उसके गाल पर एक थप्पड़ मारी। वह बिचारा मासूम देखता रह गया। अमीर की गरीब के प्रति यह बदतमीजी इसी बात का प्रमाण था कि धन सभी को हजम नहीं होता।
हम भी एक दिन साइकिल पर जा रहे थे। जिस शहर में हम पलकर बढ़े हुए हैं उसी शहर के मुख्य चैराहे से कुछ दूर हमारी साइकिल के आगे एक कार निकल कर थोड़ी दूर रुकी। यह इतना अप्रत्याशित था कि हमारा संतुलन गड़बड़ा गया पर हमने अपनी साइकिल को रोक लिया और टक्कर नहीं हो पायी। उसमें से कार वाला बाहर आया और अपनी कार को देखने लगा। वह ऐसे पेश आ रहा था कि जैसे उसके बाप ने सड़क उसे खरीद कर दी हो। फिर उसने हमें ऐसे जाने का इशारा किया जेसे कि किसी मामले में बाइज्जत बरी कर रहा हो।

कहने का तात्पर्य यह है कि धन को हजम करना भी एक वैसी कला है जैसे खाने को हजम करना। अगर धन पचने वाली चीज होती तो हार्टअटैक,, डाइबिटीज, ओर उच्च रक्तचाप जैसे राजरोग नहीं फैलते। किसी गरीब या मजदूर को हमने इन बीमारियों का शिकार होते नहीं देखा। आप कहेंगे कि यह तो भोजन के अपच होने के ही परिणाम है पर नहीं चिकित्सक तो यही कहते हैं कि यह राजरोग दिमागी तनाव से पैदा होते हैं। स्पष्टतः यह धन पचाने से जुड़े हुऐ हैं। जब धन आता है तो आदमी अहंकार वश शारीरिक श्रम से परे रहते हुए हमेशा इस प्रयास में रहता है कि वह अपना पभाव किसी पर जमाये। मतलब धन उसे हजम नहीं होता। इसका कोई मंत्र नहीं बताता। हम जानते हैं पर बतायेंगे नहंी क्योंकि इसके लिये फीस हमको चाहिये। इधर मुफ्त सेवा में कोई न नाम मिलता है न नामा। समस्या वही है कि आखिर धन पचाने का मंत्र चाहिये इस बात को मानते कितने लोग हैं?’
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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