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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

9/19/10

क्रिकेट में फिक्सिंग का मौसम और हिन्दी ब्लॉग-हिन्दी व्यंग्य (cricket match and hindi blog-hindi vyangya)

क्रिकेट शुरु हो गयी तो ब्लाग पिटना शुरु हो गये। हिन्दी दिवस के एक दिन पहले अनेक ब्लागों ने जमकर हिट पाये तब कहना पड़ा कि ‘थैंक्स हिन्दी, चलो एक दिन ही सही ब्लागों पर हिट तो दिलवाये। अगले दिन ब्लाग सामान्य स्थिति में लौटे पर फिर अचानक पाठ तथा पाठ पठन संख्या एकदम गिर गयी। समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या हुआ? क्या यह तूफान गुज़र जाने के बाद की शांति है-जी हां तूफान आने से पहले शांति होती है तो उसके गुज़र जाने पर भी उन जगहों पर शांति दिखाई देती है जहां इंसान और पशु नहीं बसते। ब्लाग को पिटता देखकर कुछ ऐसा भी लगा कि जैसे तेज बरसात होने के बाद अचानक बंद हो जाती है और धूप निकलते ही गर्मी होने लगती है। उससे फिर बरसात होती है, फिर शीतलता का अहसास होने लगता पर ब्लाग पर अगले कुछ दिनों तक हिन्दी दिवस के एक दिन पूर्व जैसे हिट मिलने की संभावना अब नहींे है क्योंकि क्रिकेट का मौसम कम से कम एक या डेढ़ महीना चलेगा। पिछले तीन वर्षों का अनुभव यह बताता है कि हिन्दी अंतर्जाल का हिन्दी पाठकों एक बहुत बड़ा वर्ग उस समय कम हो जाता है जब कोई क्लब स्तरीय प्रतियोगिता-चाहे वह भारत में हो या बाहर-होती है।
इधर पाकिस्तान के क्रिकेट खिलाड़ियों का भी फिक्सिंग का मौसम चल रहा है। एक मैच से निकलते नहीं है कि दूसरा मैच फिक्स कर लेेते हैं। उन्होंने फिक्सिंग के नये नये तरीके ईजाद कर लिये हैं। हर बाल पर फिक्सिंग करने का उन्होंने जो तरीका निकाला है वह नया जरूर लगता है पर इसका अनुमान क्रिकेट के कुछ जानकार आम लोग पहले ही कर चुके थे जब अखबारों में यह समाचार आया था कि अब सट्टेबाज किसी मैच की बजाय उसकी गतिविधियों पर ही दांव खिलवायेंगे। जहां दो देश मैच खेलते हैं वहां की जनता की भावनायें भी जुड़ जाती हैं और जब पोल खुलती है तो खिलाड़ियों की इज्ज़त धूल मे मिल जाती है इसलिये उसकी गतिविधियों पर ही दांव खेले जाते हैं। फिर अंतर्राष्ट्रीय मैचों में खिलाड़ियों पर तमाम तरह के प्रतिबंध लगाये गये कि मोबाईल नहीं रख सकते या किसी से मिल नहीं सकते। इसलिये क्लब स्तरीय प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया-जिसमें खिलाड़ी अपनी मर्ज़ी के खुद मालिक होते हैं।  प्रचार माध्यमों ने उनका पूरा साथ देकर इन क्लब स्तरीय प्रतियोगिताओं को लोकप्रिय बना दिया ताकि उनको विज्ञापन से धन तथा विषय सामग्री प्रस्तुत करने के लिये दृश्य मिलते रहें-टीवी समाचार चैनलों का एक में से आधा घंटा क्रिकेट के दृश्यों तथा चर्चा पर ही आधारित होता है। अब इन पर सट्टा तो लगता है पर चूंकि इससे कोई भावनायें नहीं जुड़ी हैं इसलिये कोई ध्यान नहीं देता। ऐसे भी समाचार आये कि इन प्रतियोगिताओं के अनेक मैच फिक्स होते हैं पर कोई बावेला नहीं मचता।
बीस ओवरीय पद्धति पर आधारित इन मैचों के लिये दर्शक अब एक दिवसीय मैचों से अधिक हो गये हैं। इतना ही नहीं लोग राष्ट्रप्रेम की भावना से परे होकर केवल चौके छक्के देखने में मशगूल हो जाते है। सभी लोग दांव नहीं खेलते पर कुछ लोग तो शायद ऐसे हैं जिनका खेल में कम अपने लाभ में अधिक ध्यान रहता है। स्पॉट फिक्सिंग’ यानि मौके पर दांव लगाने के प्रचलन से खिलाड़ियों के साथ ही उनके अदृश्य प्रायोजकों को भी फायदा है। दूसरी बात यह कि फंस जाने पर आम जनता से नाराजगी का खतरा भी नहीं है। कह सकते हैें कि ‘हमने कोई देश की प्रतिष्ठा थोड़े ही दांव पर लगायी है।’
पिछली बार भारत में हुई क्लब स्तरीय प्रतियोगिता को लेकर इतना बावेला बचा। अनेक सरकारी विभाग सक्रिय हुए। राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट नियंत्रण करने वाले संगठन आग बबूला होते दिखे मगर नतीजा ढाक के तीन पात। एक मुर्गा है पाकिस्तान जिसको चाहे हलाल कर लिया जाता है क्योंकि वह आतंकवाद के नाम पर भी वैसे भी बदनाम है। अभी एक विदेशी अखबार ने दावा किया था कि दुनियां भर के 29 खिलाड़ी स्पॉट फिक्ंिसग में शामिल हैं और ये उन सभी देशों से संबंधित हैं जो क्रिकेट खेलते हैं। मतलब अकेले पाकिस्तानी इसमें शामिल नहीं हैं-इसका प्रमाण यह भी है कि इस मामले में दलाली करने वाले लोग दुबई और भारत में रहने वाले बताये जाते हैं।
पाकिस्तान का एक खिलाड़ी शाहिद अफ्रीदी काफी जीवट वाला माना जाता है। इंग्लैंड के खिलाफ एक दिवसीय श्रृंखला में कप्तानी करते हुए उसकी टीम दो एक दिवसीय मैच हार गया। पाकिस्तान की यह दोनों हार शक के दायरे में नहीं आयी। तीसरे एक दिवसीय मैच में पाकिस्तान जीता तो वह मैच शक के दायरे में आ गया। बताया गया कि पाकिस्तान के खिलाड़ियों की दौड़ दर यानि रन रेट शकशुबहे वाली है। इस मैच में अफरीदी रन आउट हो गया। हम फिक्स मैच देखने का मज़ा उठाने के ख्याल से आजकल पाकिस्तानियों के मैच देखते हैं पर अफ़रीदी का इस तरह आउट होना अपने को हज़म नहीं हुआ।
गेंद आसमान से उड़ती हुई विकेटकीपर के पास आ रही थी और अफ़रीदी बल्ला हवा में लहराते हुए दौड़ रहा था जैसे मन ही मन ही दुआ कर रहा हो कि विकेटकीपर जल्दी उसे आउट कर दे जिससे बाहर बैठे उसके अदृश्य प्रायोजक खुश हो जायें। फिर भी दौड़ने में कुछ जल्दी कर गया। वह तो गनीमत है कि तीसरे कैमरे की आंख ने उसे आउट न होने से बचा लिया। जब गेंद विकेट में लगी अफ़रीदी का बल्ला अंदर पर हवा में था। अफरीदी को संदेह का लाभ मिलने का खतरा था जो टल गया। कम से कम पाकिस्तानियों ने इस बार फिक्सिंग में देश भक्ति दिखाई और मैच जीत लिया। सारी दुनियां को भी बता दिया कि स्पॉट फिक्ंिसग के बावजूद मैच जीता जा सकता है। अन्य देशों के खिलाड़ी उससे सीख सकते हैं।
मैच समाप्ति पर जब इनाम बंट रहे थे तब उद्घोषक ने अफ़्रीदी से पूछा गया कि ‘क्या वह सुस्त दौड़ से रन आउट हुआ?’
उसने कहा-‘हां!
हमें यह सुस्ती भी उस समय फिक्स लगी थी जब वह दिखाई गयी थी। अब तो पूरा मैचा ही संदेह के घेरे में आ गया है। वैसे फिक्स मैच देखने में भी मज़ा है यह पहली बार पता चला। हमें यह पता था कि पाकिस्तानी खिलाड़ियों के पास इस मैच में जीतने के अलावा कोई विकल्प नहीं है क्योंकि पहले दो मैच हारने के बाद यह तीसरी हार बाकी श्रृंखला का मज़ा खराब कर देती। ऐसे में स्पॉट फिक्सिंग या रन रेट फिक्सिंग  में दांव लगाने वाले लोगों की संख्या कम हो जाती। लोग अक्सर एक सवाल पूछते हैं कि आखिर पाकिस्तानी खिलाड़ी ही क्यों फिक्ंिसग में फंसते हैं। इसका सीधा जवाब यह है कि उनके पास न तो विज्ञापन हैं न ही रैम्प में नाचने की सुविधा। अपने पड़ौसी देश भारत तथा मित्र देश श्रीलंका के खिलाड़ियों के मुकाबले उनके पास धन केवल इसी रास्ते आ सकता है। दूसरी बात यह कि वह मैच जीतने की कुब्बत रखते हैं इसलिये उनका हारना भी बिक जाता है। रन आउट होना फिक्स किया तो क्या मैच भी तो जीता। ऐसे कुब्बत भला कोई दूसरे देश के खिलाड़ी दिखा सकते हैं? पाकिस्तानियों को जीत भी फिक्स करना आती है! भला कौन उनकी इस चालाकी को चुनौती दे सकता है। एक बात जो सबसे महत्वपूर्ण है वह यह कि उनकी फिटनैस पर कोई सवाल नहीं उठाता जबकि भारतीय टीम में कभी पांच छह खिलाड़ियों के अनफिट होने की बात कही जाती है। इसका प्रमाण है कि 40 बरस के उनके कौच गैरी कर्स्टन ने स्टेडियम में छह चक्कर लगाये जबकि भारतीय धुरंधर एक दो में ही हांफने लगे थे। यह बात प्रचार माध्यम ही बताते हैं। पाकिस्तानियों के हारने के साथ जीतने का भी अभ्यास करना है इसलिये वह फिटनेस का ध्यान रखते होंगे। यही कारण है कि उन्होंने भीष्म पितामह की तरह अपनी इच्छा के बिना न हारने और न जीतने का वरदान ले लिया है।
आखिरी सवाल यह है कि कहीं तीसरे मैच में हारना कहीं गोरों ने भी तो फिक्स नहीं किया था? दोनों टीमों के खेल से तो ऐसा ही लगता है कि परिणाम का निर्धारण पाकिस्तानी ही कर सकते हैं। इस मामले में उनको चुनौती मिल सकती है तो आस्ट्रेलिया की टीम ही है जिसके कुछ खिलाड़ी हमेशा ही संदेह के दायरे में रहते हैं।
वैसे प्रचार माध्यमों में किसी प्रतियोगिता या मैच के बाद ही फिक्सिंग की चर्चा होती है। तब लगता है कि हमने वक्त बरबाद किया। वैसे यह मानकर चला जाये कि सारे मैच फिक्स होते हैं तो फिर उनको निष्काम भाव से देखा जा सकता है क्योंकि तब जीत की खुशी के भ्रम या हार के तनाव से आदमी मुक्त होता है। रहा ब्लागों के पिटने का सवाल तो क्लब स्तरीय प्रतियोगताओं के समय यह होना ही था। अलबत्ता हमें इन प्रतियोगताओं का ध्यान तब आता है जब ब्लाग पिटने लगते हैं और उसका देखते हुए चिंता लगती है। अब तो यह मान लिया है कि फिक्सिंग का मौसम हमारे ब्लाग के लिये विश्राम का मौसम होता है।
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लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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1 comment:

ओशो रजनीश said...

पाकिस्तान का कोई मैच ऐसा भी हो शायद जो फिक्स न हो ....... ब्रकिंग न्यूज़ हो जाएगी

बहुत बढ़िया प्रस्तुति .......

इसे भी पढ़कर कुछ कहे :-
आपने भी कभी तो जीवन में बनाये होंगे नियम ??

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