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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

3/10/11

मनोरंजन की भूख का परिणाम हैं सट्टा-हिन्दी लेख (result of more entertainemnt-hindi article

संगीत पर आधारित एक टीवी कार्यक्रम अब सट्टेबाजी में संलिप्त होने के आरोप का शिकार हो गया है। इस संगीत कार्यक्रम में अनेक प्रतियोगी शामिल हुए जो फिल्मी गीतों पर नृत्य प्रस्तुत करते थे। इसके निर्णायकों में मुंबईया फिल्मों की एक पूर्व प्रसिद्ध अभिनेत्री और एक गायक भी शामिल थे। इस प्रतियोगिता के निर्णायकों की योग्यता पर सवाल उठाने के साथ ही यह बात भी सामने आयी है कि उन पर किसी निर्णय का उत्तरदायित्व न डालकर एसएमएस करने वालों पर डाल दिया गया है। बताया गया है कि इसमें शामिल दो प्रतियोगियों में एक पर 1.25 रु. तथा दूसरे पर 2.00 रु. था। अंततः जिस पर सट्टेबाजों को लाभ अधिक होना था उस कम दर वाले प्रतियोगी को जितवा दिया गया। कहा गया कि यह जनता का फैसला है। ऐसा ही आरोप बॉस नाम के एक कार्यक्रम पर भल लगाया गया।
दरअसल टीवी चैनलों ने समाचार देकर वाहवाही तो लूटी है पर जिस तरह निर्णायकों को इस निर्णय में एक एकदम निष्क्रिय बताया है क्योंकि उनकी चर्चा बिल्कुल नहीं की। यह प्रयास शक पैदा करता है अंततः प्रचार माध्यम अपने ही प्रायोजकों के नायकों और नायिकाओं को बचाते हैं। वह कहते हैं कि सटोरियों ने फर्जी एसएमएस कर कम दर वाले प्रतियोगी को जितवाया। तब सवाल यह है कि निर्णायक क्या कर रहे थे? इसमें कुछ सवाल हैं।
1. जब पहले निर्णय होतें थे तब निर्णायक मंडली के गायक और अभिनेत्री प्रत्यक्ष जिम्मेदारी लेते हुए अपना फैसला देते थे। अंतिम कार्यक्रम में क्या उनको निष्क्रिय रहने के लिये कहा गया था? इसका मतलब सट्टेबाज जानते होंगे कि भविष्य में यह मामला खुलेगा या वह स्वयं ही उनकी कृपा के आकांक्षी चैनलों को सनसनी फैलाने के लिये समाचार देंगे। ऐसे में स्वच्छ छवि वाले गायक और अभिनेत्री को विवाद से बचाया जाये क्योंकि वह आगे भी काम आयेंगे।
2.यह सट्टेबाजी की खबर लीक कैसे हुई? क्या आम लोगों को यह संदेश भेजा जा रहा है कि अब वह क्रिकेट से उकता गये हों तो ऐसे कार्यक्रमों में भी अपना पैसा खर्च कर दिल बहलायें।
अब यह बताने की जरूरत नहीं है कि धनपति, माफिया तथा प्रचार के शिखर समूहों का कहीं न कहीं आपस गंठबंधन है। पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ियों पर आरोप लगाने वाली वहां की एक बदनाम अभिनेत्री अगर किसी भारतीय चैनल के कार्यक्रम में क्रिकेट के काले पिताओं की नाराजगी लेकर आती है तब यह बात गले नहीं उतरती। भारतीय मनोरंजन के क्षेत्र में क्रिकेट पर पर्दे से नियंत्रण करने वाली ताकते उसी तरह सक्रिय हैं जैसे प्रचार क्षेत्र में। ऐसे में एक क्षेत्र में नाराजगी लेकर दूसरे क्षेत्र में कोई प्रवेश नहीं कर सकता
एक बात दूसरी भी लग रही है कि क्रिकेट में सट्टा या तो कम लग रहा है या तमाम दबावों के कारण पर्दे के पीछे बैठे काले पिता उस तरह नहीं लगा पा रहे जैसा वह चाहते हैं। या फिर उनको लगता है कि संगीत और हास्य कार्यक्रमों में भी वह अपना हाथ आजमा लें। क्रिकेट अब बदनाम हो चुका है इसलिये संभव है कि आगे भारत का मूर्ख वर्ग करोड़ों के चक्कर में अपने लाखों बरबाद न करे इसलिये संगीत और हास्य प्रतियोगिताओं में भी अपना दखल प्रारंभ कर दें। एक हास्य कार्यक्रम में जिस तरह बाज़ार और प्रचार के तयशुदा एक नायक, एक गायिका और एक नायिका को लाया गया है उसके बाद अनेक संदेह लोगों के मन में उठ ही रहे हैं क्योंकि इन तीनो की पहचान हास्य कलाकार के रूप में नहीं है यह अलग बात है कि उनके खड़े हुए विवाद हास्य का ही बोध कराते रहे हैं।
इससे एक बात सामने आती है कि हम भारतीयों की सबसे बड़ी कमजोरी मनोरंजन है। मनोरंजन में भी अपने धन की भूख शांत करने से मनोरंजन दुगना हो जाता है। यह अलग बात है कि कालांतर में यह बर्बादी का कारण बनता है। अक्सर भारतीयों पर अधिक खाने का आरोप लगता है। कहते हैं कि भारतीय खाने के लोभी हैं। इस पर विवाद होता है। यह सच हो या न हो इतना तय है कि हमारे समाज का एक तबका मनोरंजन का भी लोभी है। यही कारण है कि जहां भारतीय समाज के लिये मनोरंजन है वहीं सट्टा प्रारंभ हो जाता है। 1983 में भारत-जिस हम तो अब केवल बीसीसीआई नामक क्लब की टीम मानते हैं- ने एक दिवसीय विश्व क्रिकेट प्रतियोगिता जीता। उसके बाद देश हर वर्ग, जाति, वर्ण, भाषा तथा आयुवर्ग का आदमी इससे मनोरंजन करने के लिये जुड़ा। उसके बाद बीसीसीाआई की टीम कहें या भारत बुरी तरह से हारता रहा फिर भी लोगों ने इससे आशा नहीं छोड़ी। 2007 में बीसीसीआई की टीम विश्व क्रिकेट प्रतियोगिता में बुरी तरह हारी तो देश के लोगों के मन टूट गये। उस समय यह हालत हो गयी थी कि कंपनियों ने अपने क्रिकेट खिलाड़ियों के अभिनीत विज्ञापन देना ही बंद कद दिया। मगर फिर 2008 में बीस ओवरीय प्रतियोगिता में बीसीसीआई की टीम को जितवा कर भारतीय परचम फहराया गया। लोग फिर लौटे। अब तो कहते हैं कि क्रिकेट में हर बॉल पर सट्टा लगता है। यह सब बातें यही टीवी चैनल वाले कहते हैं जो बाज़ार और प्रचार समूहों के शिखर पुरुषों के नियंत्रण में है। यह अलग बात है कि वह आधी बताते हैं इसलिये कि सनसनी फैलानी हैं। आधी छिपाते हैं कि असली नायक बचे रहें।
बहरहाल मनोरंजन क्षेत्र में अच्छे कार्यक्रम तभी तक आते हैं जब तक उनका लक्ष्य मनोरंजन करना होता है। जब उसमें लोगों की भावनाओं का अपवित्र भावनाओं का दोहन करने का भाव हो जाता है। दूसरी बात यह भी कि देश के विकास की बातें अब मजाक बनकर रह गयी है। सट्टेबाजी का बढ़ता प्रकोप इस बात का प्रमाण है कि देश का पैसा उन लोगों के पास अधिक जा रहा है जिनके पास उसे हजम करने की शक्ति नहीं है। उनके मनोरंजन की भूख इतनी आसानी से शांत   नहीं हो सकती जब तक उनका पैसा बर्बाद न हो जाये।
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लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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3 comments:

IRA Pandey Dubey said...

वो दिन दूर नहीं जब जीवन मै भी सट्टा लगेगा कोण कब तक जियेगा ,बहुत अच्छी प्रस्तुती .

Anonymous said...

यह एक अच्छा परिदम ह
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Unknown said...

सट्टा एक जुआ है जो सबसे बडी बुराई है।

जिसे व्यसन ही कहा जाता है, 'मनोरंजन की भूख' व्यसन ही है।

निरामिष: शाकाहार : दयालु मानसिकता प्रेरक

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