लीबिया के तानाशाह गद्दाफी को आज से 42 वर्ष पूर्व अगर कोई अपनी उस प्रकार की मृत्यु की तस्वीर खींचकर बता देता तो वह कतई राजनीति में नहीं आता। लीबिया के सर्वोच्च पद पर रहते हुए उसने ढेर सारे सुख भोगे होंगे। उन सुखों की कल्पना तक उसने बचपन में नही की होगी। वह बेखटके अपने राज्य सुख भोगता रहा। इस दौरान अपनी शक्ति में मदांध होकर उसने अनेक ऐसे भी काम किये होंगे जो कि राजस पुरुष के हाथ से अहंकारवश हो ही जाते हैं। अगर उसे कोई भविष्यवाणी कर यह बता देता कि राज्य प्रमुख पद पर प्रतिष्ठित होने से उसको इस तरह की मौत मिलेगी तो वह हर हाल में रहना मंजूर करता पर राजनीति में नहीं आता। मिठाई खाने वाले को अगर यह बताया जाये कि उसकी मिठाई में जहर है तो वह उसे नहीं खायेगा। इंसान कितना भी भूखा हो पर पर उसमें जहर होने की सूचना उसे विरक्त कर देती है।
ऐसा हमेशा होता नहीं है कि आदमी अपने कर्म फल का अनुमान करे। विश्व भर में अनेक ज्योतिषवेता हैं पर वह ऐसी भविष्यवाणी नहीं कर सकते कि किसी की मौत दर्दनाक होगी या सहज। अनुमान से किसी की भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हो जाये पर उसके लिये संयोग जिम्मेदार होता है। इसके बावजूद श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन करने वाले जानते हैं कि अंततः राजस कर्म का परिणाम अहंकार, लोभ तथा काम के कारण दुःख के रूप में प्रकट होता है। पहले तो सात्विक लोग राजस कर्म करते नहीं पर अगर करें तो वह सात्विक मार्ग पर नहीं चल सकते। अक्सर लोगों को लगता है कि राजकाज में संलग्न रहना ही राजस कर्म है पर ज्ञानी जानते हैं कि राजस भाव अधिकतर सभी लोगों में रहता है-यह अलग बात है कि कुछ लोग सहजता से राजसी कर्म करते हैं तो कुछ तामस प्रवृत्ति की सहायत लेते हैं जैसा कि गद्दाफी ने किया।
मनुष्य की यह प्रवृत्ति है कि वह अपने सांसरिक कर्म से अन्य मनुष्यों पर शासन करना चाहता है। सभी लोग राजा बनकर प्रजा पर शासन करे यह जरूरी नहीं है पर अपने आसपास के लोगों से प्रशंसा पाने के लिये लालायित रहना भी इसी प्रवृत्ति का प्रतीक है। यही राजस भाव है जो कि अंततः सुख के बाद दुःख का कारण बनता है।
गद्दाफी को एकदम बेरहमी से मारा गया। इतनी बेरहमी से कोई आवारा कुत्ते को भी नहीं मारता। उसके शरीर में गोलियां लग चुकी थीं। वह खून से सराबोर था। उसे जब अस्पताल ले जाने की आवश्यकता थी तब लोग उसे पीट रहे थे। अगर इस तरह कोई व्यक्ति राह पर दुर्घटना के बाद मिले तो अनजान लोग भी उसकी सहायता के लिये आयेंगे जबकि गद्दाफी पिट रहा था। उसीे घायल तस्वीरें टीवी चैनलों पर दिखाकर बताया गया कि उसका खून गोलियां लगने के कारण निकल रहा था। देखा जाये तो गोलियां ताजा लगी थीं और जिस तरह उसकी स्थिति थी उसे देखकर प्रतीत होता था कि अगर उस समय भी वह अस्पताल ले जाया जाता तो बचता नहीं क्योंकि कालांतर में गोलियों की पीड़ा बढ़ने और रक्त स्त्राव से उसका जीवन नष्ट होना था। गद्दाफी के 42 वर्ष के सौभाग्य ने साथ छोड़ा तो पलभर का दुर्भाग्य उसके लिये मौत का संदेश ले आया।
गद्दाफी की यह मौत अच्छे खासे आदमी को राजकाज के कर्म में लिप्त होने से रोक सकती है। उससे भी महत्वपूर्ण बात यह कि अमेरिका से मित्रता रखने वाले देशों के राज्यप्रमुखों को भी डरा सकती है। यह सभी जानते हैं कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका पूरे विश्व का खैरख्वाह बन गया हैं मध्यएशिया के तेल उत्पादक देशों पर उसका नियंत्रण रहा है। जो भी वहां तानाशह है वह अभी तक किसी न किसी रूप में उसके हितचिंतक ही रहे हैं। इराक के सद्दाम हुसैन अमेरिका तो गद्दाफी ब्रिटेन के प्रिय रहे पर अंततः दोनों को बुरी मौत मिली। ऐसे में जिन लोगों को अमेरिका और ब्रिटेन से राजनीतिक या आर्थिक मदद मिलती है उन्हें यह समझना चाहिए कि पश्चिमी देश किसी के सगे नहीं है। उल्टे उनके निकट रहने से सारी कमजोरियां उनकी नज़र में आ जाती हैं और समय आने पर वह पुराने मित्र को निपटाने के लिये नये शत्रु खड़े कर बुरी हालत कर देते हैं। सद्दाम हुसैन और गद्दाफी को निपटाने क्रे लिये उनके ही देश में विरोधी खड़े किये। फिर पश्चिमी देशों ने पहले उनकी सेना को तहस नहस किया जिससे विद्रोहियों ने उनको निपटाया। दूसरी बात यह कि अगर अमेरिका या ब्रिटेन का एक बात पल्लू पकड़ा तो फिर उसे छुड़ाने का प्रयास करने की बजाय नियमित रूप उसे उनके सामने अपनी उपयोगिता साबित करना चाहिए।
लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athour and writter-Deepak Bharatdeep, Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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