अगर हम व्यक्ति की अभिव्यक्ति को उसके अंतर्मन की सही स्थिति माने तो यह निष्कर्ष निकलेगा कि वह वैसा ही जैसा शब्द लिखता है या बोलता है। बोलना लिखने से ज्यादा आसान है इसलिये लोग बोलते ज्यादा लिखते कम हैं। इस पर जब लिखने की बाध्यता हो तब कोई भी आदमी चिंता में पड़ जाता है और उसका चिंत्तन हवा होकर उसे शून्य में धकेल देता है। हम बात कर रहे है इंटरनेट पर अभद्र शब्द लिखकर नाम कमाने वालों की उस प्रवृत्ति का, जो अब आम हो गयी है। गाली गलौच और या खालीपीली का मजाक इस बात को दर्शाता है कि आदमी में विवेक की कमी है। फेसबुक, ट्विटर, ब्लाग या वेबसाईटों पर अनेक बार ऐसे शब्द देखने को मिलते है जब लगता है कि अविवेकी लोगों का एक बहुत बड़ा समूह इंटरनेट पर अपनी भड़ास निकालने के लिये सक्रिय हो गया है। इनसे निजात पाना संभव नहीं है पर इतना तो अवश्य किया जा सकता है कि इनकी टिप्पणियों को अपने पृष्ठों पर जगह ही नहीं दी जाये।
पहले ब्लाग, फिर ट्विटर और ऑरकुट पर लोगों की सक्रियता इतनी नहीं थी पर अब फेसबुक ने एक तरह से आम जनमानस को इससे जोड़ दिया है। देखा जाये तो ब्लॉग पर लोगों की सक्रियता कम हो गयी है पर वास्तव में अपनी बात को प्रमाणिक ढंग से कहने वालों के लिये वही एक जोरदार जगह बनी हुई है। जिन लोगों को टिप्पणियों का इंतजार नहीं है और न ही व्यवसायिक रूप से अपनी सफलता दिखाने की बाध्यता है उनके लिये ब्लॉग पर लिखना स्वयं की रचना करने की भूख शांत करने का एक शानदार माध्यम है। फेसबुक ने नयी पीढ़ी को तेजी से इंटरनेट की तरफ आकर्षित किया है। इसका कारण यह है कि उसमें आपसी संपर्क, संवाद, तथा संदेश प्रेषण का यह एक जोरदार माध्यम बना है। त्वरित प्रतिक्रिया के साथ ही अपने आत्मीय, प्रिय तथा मैत्री संपर्कों को निरंतर सक्रियता देखकर एक प्रसन्नता का अनुभव होता है। इस लेखक ने बहुत दिनों तक फेसबुक पर खाता बनाकर उसे देखा तक नहीं पर अपने कुछ प्रियजनों के साथ जब संपर्क हुआ तो ऐसा कोई दिन नहीं होता कि उसे न देखते हों। पहले फेसबुक के प्रति उदासीनता का भाव इसलिये था क्योंकि वहां अपने खालीपन को बिताने का कोई विषय नहीं था। कुछ आत्मीय जनों की सक्रियता देखकर प्रसन्नता होती है। यह एक आम व्यक्ति की स्थिति है पर जब हम अपने लेखकीय स्वरूप के साथ इंटरनेट पर आते हैं तब फेसबुक एकदम सीमित साधन लगता है। आत्मीय, प्रिय तथा मै़त्री भाव वाले लोग हमारे साहित्यरूप से स्नेह नहीं करते बल्कि व्यक्तिगत व्यवहार के प्रति उनका आकर्षण होता है। ऐसे में उनके साथ हास्य कवितायें, निबंध, लेख तथा व्यंग्य जैसे विषय साझा करना अपने को ही मजाक लगता है। हमारी रचना का उद्देश्य अपने साथ जुड़े पाठकों तक अपना संदेश पहुंचाना होता है जो हमारी व्यक्तिगत छवि नहीं देख पाते। एक लेखक वाह वाह या हाय हाय की परवाह किये बिना ही आगे बढ़ सकता है। ऐसे में व्यक्तिगत संपर्क उसके लिये सीमित दायरा होता है पर आम जनमानस अपने समूह के साथ जुड़ना ही एक जोरदार माध्यम बन जाता है।
बहरहाल फेसबुक ने अनेक प्रकार के समूह बनाये हैं। इन समूहों की वजह से व्यवसायिक, राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक संगठनों ने इसमें घुसकर अपना हित साधने का लक्ष्य बना लिया है। तय बात है कि यह संगठन आपस में प्रतिस्पर्धा रखते है और उनके अनुयायी एक दूसरे के साथ शाब्दिक द्वैरथ करते हुए कभी कभार मर्यादा का उल्लंघन कर जाते हैं। इन संगठनों के साथ जुड़े लोगों में आमजनमानस के मुकाबले कहीं अधिक आत्मविश्वास है इसलिये वह अपनी अभिव्यक्ति में गुस्सा खुलकर व्यक्त करते हैं तो गाली गलौच और मजाक भी कर जाते हैं। आम जनमानस ऐसा नहीं कर सकता। खासतौर से प्रबुद्ध वर्ग का व्यक्ति हमेशा अपनी छवि को लेकर जस तरह सतर्क रहता है इसलिये वह ऐसी हरकतें नहीं कर सकता। हम अपनी छह साल के अनुभव इंटरनेट पर सबकुछ जानने का दावा तो नहीं कर सकते पर इतना अवश्य कहेंगे कि इंटरनेट पर पेशेवर वर्ग ने ही अश्लीलता को प्रोत्साहन दिया है। एक तरह से उन्होंने यह संदेश दिया है कि अगर आप गाली गलौच कहीं नहीं दे सकते या गुस्सा व्यक्त करने का आपके पास कोई मंच नहीं है तो आप इंटरनेट पर इसके लिये एकांत साधना कर सकते हैं। यह अलग बात है कि इस एकांत साधना पर इन्हीं व्यवसायिक इंटरनेट कर्मियों की नज़र रहती है। संभवत यह पेशेवर इंटरनेट कंपनियों, टेलीफोन उपक्रमों तथा प्रचार समितियों के हो सकते हैं जो शायद ब्लॉग, टिवट्र और फेसबुक पर प्रारंम्भिक टिप्पणियां कर प्रयोक्ता को प्रोत्साहित करने का काम करते हैं। इसके बाद आता है राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा साहित्यक संगठनों तथा उनके शिखर पुरुषों के अनुयायियों का जो अपने द्वैरथ का संचालन यहां कर सकते हैं। ऐसा लगता है कि इन लोगों ने मर्यादा की सीमाओं का उल्लंघन किया है इसलिये अब इंटरनेट पर पर नियंत्रण की बात कर रही है। कुछ लोगों को लगता है कि यह नियंत्रण इस हद तक जा सकता है कि आमआदमी की प्रतिक्रिया का मंच-ब्लॉग, ट्विटर, फेसबुक, ऑरकुट, तथा वेबसाईटें-टूट भी सकता है। अगर ऐसा है तो दुर्भाग्यपूर्ण होगा क्योंकि अंततः संगठित इंटरनेट प्रयोक्ता तो फिर अपने पुराने मंच-टीवी, अखबार तथा आम सभाऐं-ढूंढ लेंगे पर आम आदमी का क्या होगा जो ऐसे द्वैरथों में पहले तो पड़ता नहीं अगर पड़ता है तो अपनी औकात में रहता है। वह मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता पर उसके साथ अमर्यादित विषय सामग्री इस तरह साझा की जाती है कि उसे समझ में नहीं आता कि वह उसे कैसे रोके-याद रखने वाली बात यह है कि अनेक लोग इस बात को नहीं जानते कि वह अपने यहां आयी सामग्री को प्रतिबंधित कैसे करें?
वैसे इसमें कोई संदेह नहीं है कि अन्ना हजारे और बाबा रामदेव ने अपनी छवि से ढेर सारे ऐसे इंटरनेट प्रयोक्ताओं को जोड़ रखा है जो आम श्रेणी में आते हैं। ऐसे लोग इन पर इन दोनों महानुभावों पर इंटरनेट के चश्में से नज़र रखते हैं पर वह इनके समर्थन में अमर्यादित सीमाओं के पार नहीं जा सकते। अगर कोई सीमा के पार जा रहा है तो यह बात तय है कि वह संगठित क्षेत्र का प्रयोक्ता है जिसे अपने साथ अनेक लोगों के साथ होने का आत्मविश्वास है। आमजनमानस में यह आत्मविश्वास नहीं होता कि वह गाली गलौच का इस्तेमाल करे या फिर किसी बड़ी हस्ती की मजाक उड़ाये। अतः इंटरनेट पर नियंत्रण करते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि आम जनमानस के मन में कोई आतंक न पैदा हो। अगर ऐसा हुआ तो इंटरनेट से लोग दूर होना प्रारंभ कर देंगे तब जो हानि होगी उसका आभास अभी नहीं है।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Bharatdeep, Gwalior
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