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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

4/6/14

मजदूर और विशिष्ट पुरुष-हिन्दी मुक्त कविता(mazdoor aur vishisht purush-hindi frelansare poem)


भरी दोपहर में

मैले कपड़े पहने

पसीने से नहाया

ठेले पर केले बेचता वह आदमी

आवाज देकर अपने ग्राहक की तलाश कर रहा है,

प्यास दबाने के लिये

पास रखी बोतल से गले में पानी भर रहा है।

कहें दीपक बापू सुनते हैं गरीबों के भले के लिये

बड़ी बड़ी बातें श्रीमानों के मुख से

पढ़ते हैं बड़ी क्रांतियों की कथायें बड़े सुख से,

मजदूर नहीं मांगते किसी से भीख,

मेहनत से जिंदा रहने की देते हैं जमाने को सीख,

हमने देखा है हमेशा उनको अपनी बेचैनी के साथ

 पसीने के हथियार से जंग लड़ते हुए

कभी नहीं दिखाई दिया कोई विशिष्ट पुरुष

जो उनकी सांसों में ताजगी भर रहा है।

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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak Raj kurkeja "Bharatdeep"
Gwalior Madhya Pradesh

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com 

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