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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

6/12/07

हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती-एक चिन्तन

क्रिकेट,फिल्म,राजनीति और और पत्रकारिता का क्षेत्र समाज में आकर्षण का केंद्र होते हैं । यही नहीं इन व्यवसायों से जुडे लोग सतत रुप से समाज के दृष्टिपथ में रहते हैं सामान्य आदमी को आकर्षित करते हैं।युवकों के दिलोदिमाग में वह एक आदर्श के रुप में बन जाते हैं।

वैसे तो पूरे विश्व में खेल,फिल्म,राजनीति और पत्रकारिता ही आकर्षण का केंद्र रहते हैं पर भारत में कुछ लोगों के लिए आध्यात्मिक प्रचार भी इसी श्रेणी में आ गया है और वह कहने के लिए ही समाज के हित में रहते है है वरना उनका मुख्य ध्येय धनार्जन ही होता है -इसका उदाहरण वह तथाकथित संत है जिन्हें एक समाचार चैनल ने काले धन को सफ़ेद करने के धंधे में लिप्त बताया था।भारत में खेल के आकर्षण का दायरा केवल क्रिकेट तक ही सीमित रह गया है ।

आकर्षण से जुडे इन क्षेत्रों में जहाँ धन होता है वहीं समाज में भारी प्रतिष्ठा भी मिलती है। सबसे बड़ी बात यह है कि इनमें धन की जरूरत नहीं पड़ती -दाव चल जाये तो धन,प्रतिष्ठा और सरकार में रुत्वा भी प्राप्त हो जाता है। यही कारण है कि इस देश में जिनके पास अधिक धन नहीं है वह इनमें घुसकर शीघ्रता से हासिल करना चाहते हैं -उन्हें यह भ्रम हो जाता है कि इन क्षेत्रों में केवल योग्यता से ही सब कुछ हो जाएगा। इन आकर्षक व्यवसायों से जुडे लोगों के बारे में उन्हें यह गलतफहमी हो जाती है कि जिस तरह की अच्छी,लुभावनी और सैध्दांतिक बाते वह करते हैं वैसे ही उनका व्यवहार भी होगा-और वह उनके योग्यता,प्रतिभा और लगन की क़द्र करेंगे । जब वह अपने सुनहरे सपनों के साथ इन क्षेत्रों में आते हैं और उन्हें पता लगता है कि इन प्रदर्शन व्यवसायों के पीछे का यथार्थ अन्य सामान्य क्षेत्रों से अधिक भयावह है तो टूट जाते हैं , कुछ लोग समझोते करते हुए आगे बढते जाते हैं तो कुछ लोग उसके बावजूद सफल नहीं हो पाते, और टूट जाते हैं । फिर शुरू होता हैं उनके जीवन में निराशा का दौर, जिसमें कुछ लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं । हालांकि इनमें सब लोग ढोंगी हैं यह कहना गलत होगा पर इन क्षेत्रों में प्रवेश दिलाने की नाम पर बहुत से ठगी करने वाले लोग भी सक्रिय हो गये हैं अभिनेता ,क्रिकेट खिलाड़ी और पत्रकार बनाने के नाम पर लोगों को झांसा देते हैं और उनका शोषण करते हैं उनसे लोगों का सतर्क होना आवश्यक है।

मैंने अपना जीवन एक पत्रकार के रुप में शुरू किया था, और उस समय मेरे वरिष्ट साथी जिन्हें अब मैं गुरू की तरह मानता हूँ ने मुझसे कहा था कि "कोई अगर तुम्हें अपनी बात कहता हैं तो उसकी सुनो, पर उस पर मनन करो और उस बात पर भी विचार करो जो उसने कही ही नहीं । कोई तुम्हें तस्वीर दिखा रहा है तो उसके पीछे जाकर देखो। चाहे जहां भी कोई तस्वीर हो उसके पीछे क्या होता है यह तुम जानते हो । पत्रकार का काम है खोज करना न कि दुसरे लोगों के कहे या दिखाए को प्रकाशित करना । तुम जीवन भर पत्रकारिता करो या नहीं पर विचार हमेशा एक पत्रकार के रुप में ही करना।

उन्होने मुझे आकर्षण के जाल में फंसने की बजाय उसके सत्य पर दृष्टि रखने और विचार करने की प्रेरणा दीं थी।मैं पत्रकारिता में ज्यादा समय नहीं रहा पर जितना रहा वह कई बातों को सिखाने के लिए पर्याप्त था।अपने गुरू को भी मैंने यह नहीं बताया कि उन्हें मैं क्या मानता हूँ पर उनकी शिक्षाओं को आईना बनाकर इस दुनिया को देखने का इतना आदी हो गया हूँ कि कभी भ्रमित नहीं होता। मैंने एक फिल्म की शूटिंग भी देखी थी तो उसमे इतना मजा नहीं आया जितना फिल्म में था। मतलब यह कि फिल्म के दृश्य परदे देखने में अच्छे लगते है पर जब बनती है तो उनमें वह गति या रोमांच नहीं होता जो परदे पर दिखता है। ऐसा नहीं है कि मैं फिल्म नहीं देखता पर इस सच्चाई के साथ कि जो रोमांच है वह परदे तक ही सीमित है-उसे बाहर देखने की कल्पना और उसे ढूँढना गलत होगा। मगर लोग हैं कि इन क्षेत्रो में जाते है और कहीं जल्दी -जल्दी सफलताएं मिल जाएँ तो सत्य से वास्ता नहीं पड़ता और जब पड़ता है तो उसे झेल नहीं पाते और अपनी इहलीला समाप्त करने पर आमादा हो जाते हैं ।

मैं इस कड़वे सच्चे को जानता हूँ कि हमारे देश के लोग चाहे कितना भी पश्चिमी देशों की नक़ल कर लें पर व्यवसायिक प्रवृति में अभी उनसे कोसों दूर हैं । पश्चिमी देशों का नियम है कि योग्यता दिखाओ, काम करो और पैसे लो पर हमारे यहां पहली शर्त यह है आपके संपर्क बनाओ बाकी बातें तो होती रहेंगी-यहाँ दुसरे के शोषण पर ही अपनी तरक्की का महल खङा किया जाता है । जिनके पास शक्ति है उनमें अहम भी है और वह किसी को बुलाकर या ढूँढकर काम देने की सोच भी नहीं सकते, काम की गुणवता पर प्रभाव पड़ता है तो पड़ता रहे। यहीं के लोग जब विदेशों में जाते हैं तो बेहतर काम करते हैं क्योंकि वहां उन्हें अनचाहे ही सही अपनी मानसिकता बदलनी ही पड़ती है । अगर ई-मेगजीन की कुछ कहानियों पर यकीन किया जाये तो विदेश में भी शक्ति संपन्न लोग अपने देश के लोगों के साथ देशी व्यवहार करने में नही चूकते। मतलब शोषण की प्रवृति सब जगह है और आप अगर एक कर्मयोध्दा है तो उसका सामना करने के लिए हमेशा तैयार रहें ,अपने देश में और अपने लोगों से ही नहीं विदेशों में भी ऎसी स्थिति के लिए तैयार रहें।

याद रखें हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होतीं और गुलाब के साथ कांटे और कमल के साथ कीचड़ भी होता इसीलिये हमें अपने परखने और चयन करने के लिए अपनी बुध्दी और विवेक का इस्तेमाल करना चाहिऐ। दुनिया में सब लोग बुरे नहीं होते इस विश्वास को कायम रखना चाहिए पर अपने मस्तिष्क में चिन्तन,मनन और वैचारिक प्रक्रिया में सुस्ती नहीं आने देना चाहिऐ । जिन क्षेत्रों में आकर्षण है उनमें काम करते हुए यह बात याद रखना चाहिए कि वहां के सफलता से जितना आकर्षण पैदा होता है उतनी ही असफलता की त्रासदी भी होती है-दोनों ही स्थितियों में हमें सहज होना चाहिऐ ।

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