क्रुद्ध तूफान ने पेड से कहा'
तुम भी घास की तरह झुक जाओ
नहीं तो तुम्हें गिरा दूंगा'
पेड ने कहा
'मेरी तुलना में घास क्या है
तुम तो बहुत शक्तिशाली
उसे तो कोई भी कुचल जाता है
कभी बहुत बढ़ जाती तो
आदमी काट देता है
कभी उसे पशु खा जाता है
मैं तो बरसों तक खडा रहता हूँ अविचल
तुम जैसे कई तूफ़ान झेल चुका
तुम्हें भी झेल लूँगा'
तूफान ने कहा
'अब तुम्हारी उम्र नहीं है
जो आये थे मुझ जैसे शक्तिशाली तूफान
तुम युवावस्था में थे अब बूढ़े हो गये हो
इसलिए कहता हूँ झुक जाओ
मैं तुम्हें छोड़ दूंगा '
पेड ने कहा
'मैं जब तक खड़ा हूँ अविचल रहूँगा
पशु और आदमी को शरण देता रहूँगा
घास को जो काटते हैं या खाते हैं
वह भी मेरी छाया पाते हैं
टूट जाऊंगा पर अपने आत्मसम्मान को
आंच भी नहीं आने दूंगा '
तूफ़ान का क्रोध और बढ़ गया
और तेजी से चलने लगा
हवा ने सुनी पेड की बात
पसीज गया उसका दिल और
छोडा तूफ़ान का साथ
कमजोर पड़ गया तूफ़ान
और आगे बढ़ गया
हवा ने दिया पेड को
लंबी उम्र का आशीर्वाद तो उसने कहा
'तुम्हारा कर्जा मैं दूसरों को छाया देकर
अपना कर्तव्य पूरा करते हुए चुका दूंगा'
शब्द तो श्रृंगार रस से सजा है, अर्थ न हो उसमें क्या मजा है-दीपकबापूवाणी
(Shabd to Shrangar ras se saja hai-DeepakBapuwani)
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*बेपर इंसान परिदो जैसे उड़ना चाहें,दम नहीं फैलाते अपनी बाहे।कहें दीपकबापू
भटकाव मन कापांव भटकते जाते अपनी राहें।---*
*दीवाना बना ...
5 years ago
1 comment:
रचना अच्छी है किन्तु तार्किक दृष्टी से कमजोर है।फिर भी प्रयास अच्छा है।
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