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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

7/26/09

आज नागपंचमी है-आलेख (today nag panchami-hindi article)

आज नागपंचमी है जो कि भारतीय अध्यात्म की दृष्टि से बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। इसके बावजूद इस दिन भी ऐसे कर्मकांड और अंधविश्वास देखने को मिलते हैं जिनको देखकर आश्चर्य और दुःख होता है।
सांप और नाग मनुष्य के ऐसे मित्र मित्र माने जाते हैं जो उसके साथ रहते नहीं है। सांप और नागों की खूबी यह है कि उनका भोजन मनुष्य से अलग है। आज के दिन सांप को दूध पिलाने के लिये अनेक लोग दान करते हैं जबकि वास्तविकता यह है कि दूध एक तरह से सांप के लिये विष है जो उसकी हत्या कर देता है। सांप को वन्य प्रेमी एक तरह से संपदा मानते हैं तथा पर्यावरण विद् तो सांप प्रजातियां लुप्त होने पर निरंतर चिंता जताते आ रहे हैं। सांप मनुष्य के भोजन के लिये पैदा होने वाली वस्तुओं को नष्ट करने वाले चूहों और कीड़ मकोड़ों को खाकर मनुष्य की रक्षा करता है। इसके बावजूद इंसान सांप से डरता है। यह डर इतना भयानक है कि वह सांप को देखकर ही उसे मार डालता है कहीं वह दोबारा उसे रास्ते में डस न ले।

आधुनिक वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि अधिकतर सांप और नाग जहरीले नहीं होते मगर हमारे देश में इसके बावजूद अनेक निर्दोष सांप और नाग इसलिये जलाकर मार दिये जाते है कि वह इंसान के लिये खतरा है। यह इस देश में हो रहा है जिसमें नाग को देवता का दर्जा हासिल है और यह हमारे विचार, कथन और कर्म के विरोधाभासों को भी दर्शाता है कि हम एक दिन को छोड़कर सांप और नाग के प्रति डर का भाव रखते हैं। कहते हैं कि डर हमेशा क्रूरता को जन्म देता है और सांप के प्रति हम भारतीयों का व्यवहार इसका एक प्रमाण है।
हमारे देश के अध्यात्मिक दर्शन के अनसार शेष नाग ने इस धरती को धारण कर रखा है। महाभारत काल में जब दुर्योधन ने जहर देकर भीम को नदी में फिंकवा दिया था तब सांपों ने ही उनका विष निकाला था और बाद में वह सुरक्षित बाहर आये थे। जब वासुदेव महाराज अपने पुत्र श्रीकृष्ण के जन्म के बाद उनको वृंदावन छोड़ने जा रहे थे तब नाग ने ही उनके सिर पर रखी डलिया पर बरसात से बचाने के लिये छाया की थी। हमारे पौराणिक ग्रंथों में कहीं भी मनुष्य द्वारा सांप को भोजन कराने या दूध पिलवाने का जिक्र नहीं आता। इसका आशय यही है कि उनका भोजन जमीन पर फिरने वाले वह जीव जंतु हैं जो कि मनुष्य के लिये एक तरह शत्रु हैं। शायद यही कारण है कि हमारे ऋषि मुनि मनुष्य को अहिंसा के लिये प्रेरित करते हैं क्योंकि सृष्टि ने उसकी देह और भोजन की रक्षा के लिये अन्य जीवों का सृजन कर दिया है जिनमें प्रमुख रूप से सांप और नाग भी शामिल है।
देश में बढ़ती आबादी के साथ जंगल कम हो रहे हैं और इसलिये वन्य जीवों के लिये रहना दूभर हो गया है। जहां नई कालोनियां बनती हैं वहां शुरुआत में सांप निकलते हैं और लोग डर के बार में उनको मार डालते हैं। अधिकतर सांप और नाग जहरीले नहीं होते हैं पर जो होते भी हैं तो वह किसी को स्वतः डसने जायें यह संभव नहीं है। जहां तक हो सके वह इंसान से बचते हैं पर अनजाने वह उनके पास से निकल जाये तो वह भय के मारे वह डस देते हैं। इसके विपरीत इंसान के अंदर जो वैचारिक विष है उसकी तो किसी भी विषैले जीव से तुलना ही नहीं है। धन-संपदा, प्रतिष्ठा और बाहुबल प्राप्त होने पर वह किसी विषधर से कम नहीं रह जाता। वह उसका प्रमाणीकरण को लिये निरीह और बेबस मनुष्यों को शिकार के रूप में चुनता है। वह धन-संपदा, प्रतिष्ठा और शक्ति के शिखर पर पहुंचकर भी संतुष्ट नहीं होता बल्कि वह चाहता है कि लोग उसके सामने ही उसकी प्रशंसा करेें।
सांप और नाग हमारे ऐसे मित्र हैं जो दाम मांगने हमारे सामने नहीं आते और न ही हम धन्यवाद देने उनके पास जा सकते। वैसे भी उनकी नेकी शहर में बैठकर नहीं जानी जा सकती। वह तो खेतों और खलिहानों में चूहों तथा अन्य कीड़ों का खाकर अप्रत्यक्ष रूप से मित्रता दिखाते हैं। इस नागपंचमी पर सभी ब्लाग लेखक मित्रों और पाठकों को बधाई। समस्त लोग प्रसन्न रहें इसकी कामना करते हुए हम यह अपेक्षा करते हैं कि वन्य प्राणियों की रक्षा के साथ पर्यावरण संतुलन बनाये रखने का उचित प्रयास करते रहें।
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2 comments:

Unknown said...

anupam aalekh.....
badhaai !

Udan Tashtari said...

नागपंचमी की शुभकामनाऐं.

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