पहले ब्लाग के लिये इस लेखक ने ‘निज पत्रक’ शब्द का प्रयोग किया था पर उसे प्रतिष्ठा नहीं मिल सकी। वैसे प्रसंगवश एक बात बता दें कि इस लेखक ने ही संभवतया पोस्ट शब्द के लिये पाठ शब्द लिखा था और आजकल गूगल भी उसका प्रयोग कर रहा है। अब यह पता नहीं कि वह इस लेखक की वजह से है या स्वाभाविक रूप से-संभव है पहले भी किसीने इसका प्रयोग किया हो। इधर पत्रिका शब्द का प्रयोग कई लोगों के लिये असहजता भी पैदा करता है। एक तो डोमेन लेकर पत्रिकायें प्रस्तुत हो रही हैं जिनको यह स्वीकार्य नहीं होगा कि कोई ब्लाग मुफ्त में पत्रिका बन जाये। दूसरा यह है कि अगर ब्लाग के लिये पत्रिका शब्द चल निकला तो फिर कागज पर छपने वाली पत्रिकाओं का के नाम की महत्ता कम हो सकती है। ब्लाग को पत्रिका मानने का आशय यह भी होगा कि भविष्य में इसे बनाने वालों पत्रकार मान लेना। तब तो यह हालत हो जायेगी कि जो भी ब्लाग बनायेगा वह कहेगा‘मैं भी पत्रकार हूं।’
यह लेखक यही सोचकर यह ‘निज पत्रक’ शब्द का प्रयोग करता रहा कि कहीं पत्रिका शब्द लोकप्रिय हो गया तो अनेक लोगों को अफसोस होगा। बहरहाल कल जब गूगल पर पाठ शब्द देखा तो अनुभव हुआ कि अगर हमारा पाठ शब्द वह अपना सकते हैं या संयोगवश मेल खाता है तो क्यों न हम ब्लाग शब्द का अपने द्वारा ईजाद किया गया ‘निज पत्रक’ या ‘निज पत्रिका’ शब्द के साथ आगे बढ़ें। एक बात तय रही कि हम या तो ब्लाग लिखते हैं या ‘निज पत्रक’(निज पत्रिका)-चिट्ठा तो कतई नहीं लिखते। चिट््ठा शब्द हमारे अंदर हीन भावना भी भरता है। वह यह कि हमने वाणिज्य स्नातक की उपाधि तृत्तीय श्रेणी में प्राप्त की। केवल तीन नबरों से द्वितीय श्रेणी रह गयी। हुआ यह कि वाणिज्य स्नातक के द्वित्तीय वर्ष में हमारा लेखा का पेपर बिगड़ गया था। उसमें सामान्य प्रविष्टी रोकड़ बही और लाभ हानि खाता हम सही कर गये पर कमबख्त ‘वार्षिक चिट्ठा बिगड़ गया। द्वितीय वर्ष का यह बोझ हमें तृतीय वर्ष में भी झेलना पड़ा। वहां भी वार्षिक चिट्ठा की प्रस्तुति बेहतरीन नहीं हुई। इस तरह तृतीय श्रेणी में हमारी वाणिज्य स्नातक की उपाधि सिमट गयी।
यह चिट्ठा शब्द सामान्य लोगों की जुबान पर चढ़ना कठिन भी है। कम से कम हम अपने इलाके के बारे में तो यही समझते हैं। हम हिंदी के भाषा विज्ञानी नहीं है पर इतने बेबस भी नहीं है कि तर्क न ढूंढ सकें। कम से कम वाद प्रतिवाद में अपनी बात रखने में हमारे महारथ को हमारे मित्र भी मानते हैं। अपने अनेक मित्रों से सलाह ली। हिंदी के ज्ञाता लोगों ने भी अपनी सहमति दी। सबसे बड़ी बात तो यह है कि ब्लाग लिखने वाले ही एक हमारे पहले के मित्र ने कहा-‘मैं तुम्हारी बात से सहमत हूं।’
इन्हीं मित्र ने हमसे कहा कि ‘तुम कविता मत लिखो। हमें पसंद नहीं आती। तुम तो गद्य लिखा करो। तुम अगर कहते हो कि यह पत्रिका है तो वह भी मान लेंगे क्योंकि यह कविता में नहीं कह रहे। फिर जहां तक चिट्ठा कहने का प्रश्न है तो हमें भी अच्छा नहीं लगता अलबत्ता ब्लाग जरूर कहेंगे।’
प्रसंगवश हमारे वह मित्र बहुत गजब की गजल और गीत लिखते हैं। ऐसे में कविता के मामले में उनसे बहस करना अपनी भद्द पिटवाना है। यह भी संयोग है कि हमें गद्य लिखने की प्रेरणा देने वाले उन सज्जन ने ब्लाग बना लिया। बहरहाल अपनी अपनी राय है।
चिट्ठा शब्द से उन हिंदी लेखकों को परेशानी होगी जिनका गणिक कमजोर है। यह चिट्ठा कहीं न कहीं लेखांकन की तरफ इशारा करता है। इस पर जिन्होंने वाणिज्य की पढ़ाई की और हमेशा अपने विषय को बोर अनुभव करते रहे उनके लिये भी ‘चिट्ठा शब्द’ पुरानी बुरी यादों को ताजा करेगा। फिर अनेक लोग ऐसे भी है कि कंप्यूटर पर लेखा कार्य करते हैं। जब वह चिट्ठा शब्द का स्मरण करेंगेे तो उनके लिये आंकड़ों का जाल सामने आकर संकट खड़ा करेगा। अचानक ही उनको याद आयेगा कि अमुक आदमी की रोकड़ बही बनाना है-सो लिख लिया चिट्ठा।
वैसे ब्लाग लेखन अभियान को आक्रामक ढंग से आगे बढ़ाना है तो इसके लिये ‘निज पत्रक‘ या ‘निजी पत्रिका‘ शब्द भी कम आकर्षक नहीं है। हमसे कोई पूछता है कि ‘ब्लाग यानि क्या’?’ जवाब में हम कहते हैं कि ‘समझ लो अपनी निजी पत्रिका निकाल रहे हैं। वहां से पैसा वैसा नहीं मिलता यह भी समझ लेना।’
लोग संतुष्ट हो जाते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि ‘निज पत्रक’ या ‘निजी पत्रिका’ शब्द भी इसको लोकप्रियता दिलाने में सहायक हो सकता है। हालांकि यह भी है कि अनेक लोग यह बर्दाश्त नहीं करेंगे कि इस देश के ऐरे गैरे नत्थू खैरे हिंदी कलमकार उनके सामने फोकटिया संपादक या लेखक होकर उनको चुनौती दें। खासतौर से जब किसी फोकटिया ने ही ब्लाग शब्द का नामकरण ‘निज पत्रक’ या ‘निजी पत्रिका’ के रूप में किया हो उनकी भौहें तन जायेंगी। मगर इससे क्या? हमारा मानना है कि हिंदी के वर्तमान संगठित ढांचे में बदलाव अपेक्षित हैं और अंतर्जाल के अनेक लेखक इसके लिये जद्दोजेहद करते हुए दिख रहे हैं। यह पता नहीं अंतर्जाल पर लिखने वाले दूसरों को कितना पढ़ते हैं पर हमने देखा है कि अनेक ऐसे पाठ सामने आते हैं कि दिल खुश हो जाता है। एक बार किसी फोरम पर जाते हैं तो कुछ न कुछ नया पढ़ने को मिल ही जाता है। तब यह भ्रम भी समाप्त हो जाता है कि हम ही सबसे अच्छा लिख रहे हैं। शायद अनेक लोगों को मालुम है इसलिये अंतर्जाल पर हिंदी लेखन से मूंह फेरते हुए कहते हैं कि ‘वहां कूड़ा लिखा जा रहा है’। ऐसे में पत्रिका शब्द उनके लिये चिढ़ का कारण भी हो सकता है और कह सकते हैं कि ‘काहे की पत्रिका’, वह तो चिट्ठा है।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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1 comment:
चलिये आज ही मैं इस विश्य मे {मज़ाक मे} एक विरोध दिनेश रये दिवेदि जी के ब्लाग पर दर्ज करके आयी हूँ कि जिस ब्लाग से हम अपने ब्च्चों से भी अधिक प्यार करते हैं उसे अपना बेटा कहें या बेटी?पुरुश प्रधान समाज तो इसे बलाग ही कहेगा मगर आपने पत्रिका सुझा कर स्त्रीसूचक शब्द जो दिया है उसके लिये मैं तो आपकी बहुत बहुत धन्यवादी हूँ। चिट्ठा तो गंवारों जैसा लगता है [वैसे जो इस पर झगडे हो रहे हैं वो भी तो ऐसे ही हैं} फिर ये पुरुश सूचक ही है । बडी हद इस अन्त्रजाल पत्रिका या निज पत्रिका कह लें । आप कुछ मदद कीजिये न। ये सब मज़ाक है मगर आपसे सहमत हूँ आभार्
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