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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

10/26/09

मतलब के पैंतरे अधिक दिन नहीं चलते-व्यंग्य कविता (matlab ke dav-hindi kavita)

जो दूसरे का आशियाना उजाड़कर
उस जमीन पर अपना महल बनाते हैं।
समाज सेवा के लिये वही
भरी भीड़ में पुरस्कार पाते हैं।
करते हैं जो अपने कदम तले
मासूम जज़्बातों का कत्ल
वही देश भक्ति का नारा
बड़े जोर शोर से लगाते हैं।

जमाने के बदलाव की बात करने वाले
अपने सिर पर पुरानी किताबें ढोते हुए
तरक्की का संदेश सुनाते हैं।
रोज जमाने से बेवफाई करने वाले
लोगों का वफा के लिये जगाते हैं।
चीख रहे बड़े बड़े लोग
अपनी चैन की नींद के लिये
भीड़ में चेतना लाते हैं।
मतलब के पैंतरे अधिक दिन नहीं चलते
शायद इसलिये सभी लोग अनसुनी कर जाते हैं।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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