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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

1/25/10

मृत्यु की धार और जीवन की धारा-आलेख (life and death in haiti arth quake-hindi article)

जब उस भयानक भूकम्प का हैती आक्रमण हुआ होगा तो मृत्यु ने अट्टाहास किया होगा। इतना सारा भोजन एक साथ मिलने का सौभाग्य मृत्य को हमेशा नहीं मिलता। जीवन देवता की सासें कुछ देर रुक गयी होंगी मगर वह भी संभला होगा और जिनकी सांसें बची होंगी उनके बचाने का प्रयास किया होगा। हैती के उस भूकंप की बहुत सारी यादें वहां के उन लोगों में रहेंगी जो जिंदा बच गये होंगे। जहां मौत चहूं और हमला करती है तब जीवन की धारा भले ही पतली होने के बावजूद प्रभावी ढंग से प्रवाहित हो ही जाती है और अपना अस्तित्व प्रमाणित करने के लिये कुछ ऐसे लोगों की सांसें भी बचाती है जो लगभग मुत्यु के पेट में चले गये होंगे। अनेक प्राकृतिक आपदाओं के समय जहां मृत्यु अपना भयानक रूप दिखाती है वहीं जीवन अपनी सहृदयता के कुछ अंश अवश्य प्रस्तुत करता है।
वह लड़का उस दुकान में काम करता था जहां कोकाकोला और स्नैक्स बिकते थे। भूकंप के कंधे पर सवार मृत्यु ने उस दुकान को भी तहस नहस कर दिया। चारों तरफ से दुकान ढह गयी। जब मलबा गिर रहा होगा तब मृत्यु का अट्टाहास शायद ही किसी ने देखा होगा। जो लोग मर गये वह क्या बतायेंगे और जो बच लड़का बच गया वह भी बेहोश हो गया, पता नहीं उसने मौत का चेहरा देखा था कि नहींे।
जब मौत दीवारों और छत को मलबा बनाकर गिरा रही होगी तब उस बेहोश लड़के की बची सांसोें को जीवन देवता ने पढ़ा होगा-उसके खाते में शेष रही सांसों के हिसाब पर उसकी नजर पड़ी होगाी। वह उसके पास गिरने वाले पत्थर और लकड़ी के टुकड़ों को दूर करता होगा या फिर उनको उससे दूर गिेराता होगा। जीवन मृत्यु के इस द्वंद्व को भला वह बंद आंखें कहां देख पायी होंगी जिनको बाद में अपने जीवन की लड़ाई खुद ही लड़नी थी। जीवन ने बचायी होंगी कोकाकोला की बोतलेे और स्नैकस के वह भाग जो बाद में उस लड़के काम आने होंगे क्योंकि उन पर लिखा होगा उनको उदरस्थ करने वालो का नाम जिसे मिटा पाना मृत्यु के बस में नहीं था और इसलिये जीवन उनको संजोने आया था।
पूरे 11 दिन तक वह लड़का वहां पड़ा रहा। लोग आसपास से गुजर रहे थे। वह उनको पुकारता पर कोई नहीं सुन पाता। मृत्यु अपना काम कर चुकी थी पर जीवन भी अभी थका नहीं था। मृत्यु को सारे साधन सहज उपलब्ध हो जाते है। कुछ भी न हो तो वह आकाश को जमीन पर गिरा सकती है पर जीवन के लिये अपना काम धीरज से करना होता है। मौत कुछ भी बिना सोचे समझे अस्त्र शस्त्र जुटाकर आदमी पर पटक सकती है पर जीवन को सोच समझकर अपने साधन जुटाते हुए इंसान की मदद करनी होती है। मौत को समय न अधिक मिलता है न लगता है पर जीवन के पास धीरज के अलावा कोई अन्य उपाय नहीं होता। मौत हवा का सहारा भी ले सकती है पर जीवन देवता का कार्य इस धरती के पदार्थों के बिना नहीं हो सकता-इसलिये उसे कोकाकोला की बोतलें और स्नैक्स के भाग की रक्षा भी करनी होती है।
उस लड़के ने कहा ‘मै चिल्लाया नहीं, केवल प्रार्थना करता रहा।’ वह प्रार्थना कोई अदृश्य शक्ति सुन रही होगी। मृत्यु प्रार्थना का अवसर नहीं देती क्योंकि वह बहुत जल्दी करती है। उसे मालुम है कि मैं रुकी तो कोई प्रार्थना करेगा तब मोहपाश में बंध जाउंगी। एक जगह पढ़ने को मिला था कि पैसा लेकर दूसरे आदमी का कत्ल करने वालो लोगों को सबसे पहले यही सिखाया जाता है कि ‘जिसको मारना हो उसकी आंखों में झांकना नहीं चाहिये, क्योंकि तब उसके प्रति मोह जाग जाता है।’ मौत के इस खेल को कत्ल के सौदागर बहुत अच्छी तरह जानते हैं। मौत आसानी से दी जा सकती है इसलिये लोग इस काम में लिप्त हो जाते हैं जो लिप्त नहीं होते वह भी कोई जीवन की सहज धारा बहाने में दिलचस्पी नहीं रखते। जीवन आसानी से नहीं दिया जा सकता। दूसरे से कुछ छीनना आसान है पर किसी को देने के लिये मन तैयार नहीं होता। दूसरे से मुफ्त पाने की चाह हरेक के मन में होती है पर त्याग का भाव विरलों में होता है। प्रार्थनायें सभी करते हैं पर सर्वशक्तिमान सभी की नहीं सुनता। जब प्रार्थना हृदय से की जाये तब उसके आगे वह भी लाचार होता है। उसको कोई रूप नहंी है, रंग नहीं है और न पहचान है। वह अनंत है और उसका आभास किया जा सकता है वह भी जीवन की बहती धारा में। जब उस लड़के को राहत दल ने बचाया होगा तब उसने जाना होगा कि जीवन का मोल क्या है? सामान्य स्थिति में कौन इस अमूल्य मानव जीवन का महत्व जान पाता है? पता नहीं वह उस जीवन की धारा को समझ पाया कि नहीं जो उसके पास उसकी सांसें बचाने के लिये निरंतर बहती रहीं।

लोहे, पत्थर और लकड़ी की टूटी शिलायें जो मौत ने अपनी धार से काट गिरायी थीं जीवन उसमें दबने के बावजूद अपनी ताकत दिखा रहा था। एक जीवात्मा थी उस देह में जो परमात्मा का स्मरण कर रही थी। वह पल कैसे रहे होंगे जब जीवन उन शिलाओं से बाहर आया होगा? उसकी अनुभूति तो वही कर सकता है जिसने उसे धारण किया हो? जीवन और मृत्यु का यह संघर्ष हमेशा दिखता है पर जब लड़ा जाता है तब होने वाला संताप जितना सताता है उतना ही विजय प्राप्त करने पर आनंद मिलता है। मृत्यु सत्य है पर जीवन भी असत्य नहीं है क्योंकि उसकी धारा भी निरंतर बहती है। एक मिटता है दूसरा पैदा होता है। माया का स्वरूप व्यापक है इसलिये दिखती है, तो मरती भी है जबकि सत्य अत्यंत सूक्ष्म हैं-या कहें कि उसका भौतिक अस्तित्व तो है ही नहीं-इसलिये अदृश्यव्य है मगर जीवन का आधार तो वही है भले ही उसकी धारा अत्यंत पतली होने के बावजूद शक्तिशाली है।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anantraj.blogspot.com
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