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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

10/19/07

शब्द का नकाब

अपने चरित्र पर लगे काले दागों से
जो लोग घबडाते हैं
वही अपना सच छुपाने के लिए
शब्दों का नकाब लगाते हैं
यूं तो शब्द सौन्दर्य की रचना
उनके लिए खेल होता है
पर उनके अर्थों में ढूंढो तो
खोखले भाव सहजता से
सामने आते हैं
शब्दों के नकाब में उनके सच को
पकड़ने के लिए दिल की नहीं
होती है दिमाग की जरूरत
क्योंकि उनके शब्द भावना से नहीं
निज स्वार्थ के लिए रचे जाते हैं

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