अपने कहे से लोग पलट जाते
या अपना कहा याद नहीं रख पाते
खुदगर्जी का आलम यह कि
लफ्जों के मायने लोग अपने ही
हिसाब से सुनाते
बोलने से पहले सोचते नहीं
और सोचते हैं तो बोलने के लिए
सही लफ्ज भी नहीं ढूंढ पाते
अपने ही बुने जाल में
लगाते हैं पैबंद
बिछाते हैं दूसरे के लिए
पर खुद ही फंस जाते
चमड़े की जुबान कब और कहाँ फिसली
कौन रखता है हिसाब
सुनने वाले भी कौन याद रखते हैं
जो कभी मांगेंगे जवाब
पर निकलना फिर भी
बहुत मुश्किल होता है
अपने कहे से फंसने पर
निकलना हर हाल में
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भ्रमजाल फैलाकर सिंहासन पा जाते-दीपकबापूवाणी (bhramjal Failakar singhasan
paa jaate-DeepakbapuWani
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*छोड़ चुके हम सब चाहत,*
*मजबूरी से न समझना आहत।*
*कहें दीपकबापू खुश होंगे हम*
*ढूंढ लो अपने लिये तुम राहत।*
*----*
*बुझे मन से न बात करो*
*कभी दिल से भी हंसा...
6 years ago
1 comment:
याद तो खुब रखते हैं लिग भले कुछ बोले न पलट कर. पहले ही सतर्क रहना बेहतर है.
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