अपने कहे से लोग पलट जाते
या अपना कहा याद नहीं रख पाते
खुदगर्जी का आलम यह कि
लफ्जों के मायने लोग अपने ही
हिसाब से सुनाते
बोलने से पहले सोचते नहीं
और सोचते हैं तो बोलने के लिए
सही लफ्ज भी नहीं ढूंढ पाते
अपने ही बुने जाल में
लगाते हैं पैबंद
बिछाते हैं दूसरे के लिए
पर खुद ही फंस जाते
चमड़े की जुबान कब और कहाँ फिसली
कौन रखता है हिसाब
सुनने वाले भी कौन याद रखते हैं
जो कभी मांगेंगे जवाब
पर निकलना फिर भी
बहुत मुश्किल होता है
अपने कहे से फंसने पर
निकलना हर हाल में
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शब्द तो श्रृंगार रस से सजा है, अर्थ न हो उसमें क्या मजा है-दीपकबापूवाणी
(Shabd to Shrangar ras se saja hai-DeepakBapuwani)
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*बेपर इंसान परिदो जैसे उड़ना चाहें,दम नहीं फैलाते अपनी बाहे।कहें दीपकबापू
भटकाव मन कापांव भटकते जाते अपनी राहें।---*
*दीवाना बना ...
5 years ago
1 comment:
याद तो खुब रखते हैं लिग भले कुछ बोले न पलट कर. पहले ही सतर्क रहना बेहतर है.
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