बोतल से निकली मय
मुहँ से चलकर गले में उतर आयी
एक-दो पैग में ही गम और दर्द की
गायब हो गई परछाई
ऐसे मदहोश हुए कि आकाश में
उड़ते और जमीन से हो जाती थी
दिमाग की विदाई
जितना पीते उतना ही तेज भगाती
सपनों के महल बडे-बडे सजाते
ख्याली पुलाव पकाते
उतर जाती जब सिर से
हताश हो जाती थी तरुणाई
गजल के शेर को
ख्याली पिंजडे में बंद कर दिया
शायरी को नशे की हद में तंग कर दिया
चलती रही जंग कई बरस
और निकला शेर उस पिंजडे से
छोड़ आयी हद शायरी जब नशे की
बज उठी लफ्जों की शहनाई
शराब चीज ही ऐसी है
पहले पीता आदमी
फिर पीती वह आदमी को
पर आदमी भी ऐसा है एक बार
पीता है तो छोड़ नहीं पाता
आदतन शराबी बन जाता
छोड़ दे फिर हाथ नहीं लगाता
पर फिर भी
उसकी याद को शायरी में सजाता
आदमी और मय का रिश्ता
कभी भी समझ में नहीं आता
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