उनके पास आते ही सुखद
अहसास पास आ जाते हैं
सारे गिले-शिकवे हम
पल भर में भूल जाते हैं
इसीलिए कहते हैं कि
जो शरीर के पास है
वही दिल के पास है
क्योंकि दिल ही है वह
जो आदमी को अपने चाहने वालों के
पास ले जाता है
वरना तो पास रहने वाले से ही
बहुत दूर अपने को पाते हैं
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अपनों के मुहँ से बोला गया
सहानुभूति का एक शब्द भी
दिल में उम्मीद की रोशनी जगाता है
और गैरों की ढेर सारी दुआओं से
अधिक विश्वास जगाता है
शायद इसलिए ही
अपने भी इतराते हैं
हमदर्दी के शब्दों को जुबान पर
लाने से कतराते हैं
अपने दिल को अपने से ही छिपाते हैं
रिश्तों की यही ग़लतफ़हमी है
जिनके दिल टूटते हैं
वह उसे गैरों में लगाते हैं
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शब्द तो श्रृंगार रस से सजा है, अर्थ न हो उसमें क्या मजा है-दीपकबापूवाणी
(Shabd to Shrangar ras se saja hai-DeepakBapuwani)
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*बेपर इंसान परिदो जैसे उड़ना चाहें,दम नहीं फैलाते अपनी बाहे।कहें दीपकबापू
भटकाव मन कापांव भटकते जाते अपनी राहें।---*
*दीवाना बना ...
4 years ago
1 comment:
बहुत सुंदर और सारगर्भित , बधाई स्वीकारें !
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