विश्व में भारतीय लोगों की आर्थिक शक्ति बढ़ रही है पर उनकी प्रतिष्ठा उस तरह नहीं बढ़ रही जैसी की पश्चिमी देशों के संपन्न लोगों की है। अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक संगठनों पर उनका वैसा वर्चस्व नहीं है क्योंकि इसके लिए जिस प्रकार की शक्ति चाहिए वह उसे अर्जित नहीं कर पाए। वह अपने समाज पर नियंत्रण करने से प्राप्त होती है और ऐसा तभी संभव है जब आप अपनी धन-संपदा से कुछ हिस्सा उस पर बिना आर्थिक लाभ के चुकाएँ। अपने समाज के कुछ लोगों के साथ उसके संगठनों को भी शक्तिशाली बनाकर उन पर नियंत्रण करें।
जिन भारतीयों के विदेश में संपन्न होने की इस देश में कुछ लोग अक्सर चर्चा करते रहे हैं उन्होने वहाँ किसी नये स्त्रोतों का निर्माण नहीं किया है बल्कि वहीं मौजूद स्त्रोतों का इस्तेमाल कर आर्थिक शिखर पर पहुँचे हैं। कुछ ऐसे भी संपन्न लोग हैं जो देश में ही हैं पर उन्होने विदेश में भी आर्थिक शक्ति अर्जित की है। टीवी चैनलों और अन्य प्रचार माध्यमों मे उनकी चर्चा होती है पर सामान्य लोगों में उनकी कोई चर्चा नहीं होती। वजह! समाज के लिए वह ऐसे धनपति हैं जिनका समाज को उनके संपन्न ढाँचे से कोई आर्थिक और सामाजिक लाभ नहीं है क्योंकि उन्होने अपने समाज को विकसित करने के लिए कुछ करना तो दूर उसे सतत संचालन में भी कोई भूमिका नहीं दिखाई देती।
भारतीय आध्यात्म को समृद्ध करने वाले सभी महापुरुषों ने धन और वस्तुओं के दान की बहुत सरल व्याख्या की है। जिन महापुरुषों ने दान के महत्व को प्रतिपादित किया है उनके मन में यही बात रही है कि समाज में धनी लोग ग़रीबो और असहायों को सहायता प्रदान करें ताकि उसका सुचारू संचालन होता र्हे। यह अलग बात है कि कुछ लोगों ने अगले जन्म में लाभ मिलने के अंधविशवासों को जोड़कर लोगों को भ्रमित किया और लोग अब यह दान कर्मकांडों पर अपना धन कुपात्र लोगों को देकर नरक जाने से बचना चाहते हैं। श्रीमद्भागवत गीता का ज्ञान बघारने वाले भी दान को इस तरह प्रचारित करते हैं कि जैसे उनको दिया गया दान ही असली पुण्य है जबकि श्रीगीता में सुपात्र को दिया गया दान भी फलीभूत बताया गया है और उसमें जन्म आदि की कोई शर्त नहीं है । आज के सन्दर्भ में इस दान को मैं निष्प्रयोजन विनियोजन के रूप में कहता हूँ। भारतीय पूंजीपति अगर कुछ क्षेत्रों में निष्प्रयोजन विनियोजन करते तो उनका नाम होता। कैसे?
१.वह ऐसे प्रतिभाशाली लोगों को आगे बढ्ने के लिए आर्थिक सहायता दें जिनसे उसका नाम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर करने की संभावना हो।
२।वह ऐसे संगठन और संस्थाओं को योगदान दें जो उनकी विश्व स्तर पर सामाजिक साख बनाने में मदद कर सकें।
३.वह अंतर्जाल पर अपने सर्च इंजन और वेब साईटों का निर्माण करें और उनको इतना व्यापक बनाने के लिए धन का विनिवेश करें ताकि उसमें उनेक समाज की भागीदारी बढ़े। इसके साथ अंतर्जाल पर सक्रिय पत्रिकाओं को मदद दें ताकि इसमें उनके योगदान की चर्चा यहाँ और बाहर दोनों जगह हो।
भारतीय धनपति इस बात से संतुष्ट हैं की उनके पास फिल्मी अभिनेताओं, सामाजिक और धार्मिक संगठनों के लोगों का जमाबडा है, टीवी चैनलों और अख़बारों में उनका प्रचार हो रहा है और यही सामाजिक प्रतिष्ठा का परिचायक तो ग़लतफहमी में हैं। समाज में इज़्ज़त तभी है जब कोई ग़रीब आदमी जिसे आपने धन नहीं दिया वह भी उनको याद करे। इस मामले मने कुछ ऐसे धनाढ्य लोगों के नाम लिए जा सकते हूँ जिन्हें सामान्य लोग आज भी सम्मान से देखते हैं। माननीय जे. आर. डी टाटा, घनश्याम दास बिरला और कैसेट किंग गुलशन कमार को आज भी लोग सम्मान से याद करते हैं टाटा ने जहाँ अस्पताल बनवाए और खेलों में भी अपना योगदान दिया, स्व. घनश्यादाम दास बिरला ने कई जगह धार्मिक तीर्थों पर धमर्शालाएँ और मंदिर बनवाए स्व. गुलशन कुमार ने कटरा में वैष्णोदेवी पर लंगर चलवाए। ऐसे कई लोग हैं जो वैष्णो देवी गये पर उनके लंगर में कुछ भी नहीं खाया फिर भी आज उनको याद करते हैं। हो सकता है कि कुछ लोग मेरी बात से सहमत न हों पर यह एक वास्तविकता है कि साहूकार वही है जो समाज के लिए किसी न किसी तरह के लिए व्यय करता है।
हमारे आध्यात्म में दान को जो महत्व दिया गया है उसकी कुछ लोगों ने भिखारियों और कर्मकांडों तक ही सीमित रख कर जो व्याखाया की है उससे समाज को तो कोई फायदा नहीं हुआ उल्टे समाज और धर्म बदनाम हुआ सो अलग.
आप इन विदेशियों पर टिप्पणी तो कर सकते हैं पर बताईये किसी नयी आधुनिक चीज़ के निर्माण पर भारत के इन धनपतियों के नाम कोई सृजन किया हुआ कोई कार्य कहीं लिखा हुआ है? आज अंतर्जाल पर जितनी भी सुविधाएँ हैं वह अंग्रेजी वेब साईटों की वजह से हैं। जिस इंडिक या एनी टूल से हम लोग हिन्दी लिख रहे हैं उसको लाने वाली तो एक विदेशी वेब साईट गूगल ही है-अगर देश में कोई टूल बना होगा तो वह भी किसी उत्साही व्यक्ति ने अपना श्रम और समय खर्च कर बनाया होगा। ब्लॉग भी भी विदेशी वेब साईटों के द्वारा दिए गये हैं और अगर हम बात करते हैं कि हिन्दी के विकास की तो इसमें देश के धनपतियों का योगदान आज भी नगण्य है। वह हिन्दी फिल्मों में विनिवेश करते हुए अपने आसपास अभिनेता और अभिनेत्रियों का जमघट लगा सकते हैं जिनको परदे के बाहर हिन्दी बोलना भी नहीं आता हैं पर किसी ने भी अंतर्जाल पर भारतीय भाषाओं के लेखकों को लिखने के लिए क्या कोई सहायता दी हैं? आज जो लेखक इस पर लिख रहे हैं वह इंटरनेट पर अपने कनेक्शन पर पैसा खर्च कर रहे हैं और क्या कोई ऐसी टेलीफ़ोन कंपनी आगे नहीं आई जो इसके लिए उन्हें सुविधा दे। लिखना कोई आसान काम नहीं है पर जो अपने शौक की वजह से लिख रहे हैं तो एक उपभोक्ता की तरह ही न! अंतरजाल पर जो पत्रिकाएँ निकल रहीं है उसके संपादक निष्काम भाव से अकेले जूझ रहे हैं पर क्या किसी धनपति के दिमाग़ में यह आया की इन लोगों को सहायता दें। हाँ, बड़े अख़बार अपने तामझाम लेकर यहाँ आए हैं पर अंतर्जाल पर जो स्वतन्त्र रूप से लिख रहे हैं उसको देखकर मुझे नहीं लगता की वह किसी अख़बार से काम है, कई बार तो यहाँ ऐसे विचार पढ़ने को मिल जाते हैं लो अखबारों में नहीं मिलते।
आप क्रिकेट में ही देख लें। भारत की आर्थिक शक्ति पर ही पूरा विश्व का क्रिकेट चल रहा है और आईसीसीआआई के अंपायर पैनल में भारत के अंपायर ही नहीं हैं। कहते हैं की भारत के अंपायर स्तरीय नहीं हैं? देश के चयनकर्ता कहते हैं की देश में प्रतिभा नहीं है? क्या ऐसी बातों से देश का सम्मान विश्व में बढ़ सकता है: अगर भारत का आम आदमी पूरे विश्व के लिए एक आर्थिक दोहन किए जाने वाला उपभोक्ता है तो यहाँ के जो ख़ास लोग हैं-जिन पर देश के प्रचार माध्यम गर्व करते हुए थकते नहीं है- वह भी वहाँ कोई साहूकार नहीं माने जाते-उनके हैसियत वहाँ एक कुशल प्रबंधक से अधिक नहीं है। यहाँ उनके विज्ञापनों पर चलने वाले टीवी चैनल और अख़बार उनका कितना भी गुणगान कर लें पर समाज को साथ लेकर न चलने की वजह से विश्व की मीडिया में उन्हें कोई सम्मान नहीं है। भारत के कितने भी धनपति बाहर जाकर भले ही संपन्न हो जाये पर सम्मानीय हों पर पर वे अमेरिका के फ़ोर्ड और बिल गैट्स नहीं हो क्योंकि उनको अपने समाज का वैसा समर्थन प्राप्त नहीं है।
शब्द तो श्रृंगार रस से सजा है, अर्थ न हो उसमें क्या मजा है-दीपकबापूवाणी
(Shabd to Shrangar ras se saja hai-DeepakBapuwani)
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*बेपर इंसान परिदो जैसे उड़ना चाहें,दम नहीं फैलाते अपनी बाहे।कहें दीपकबापू
भटकाव मन कापांव भटकते जाते अपनी राहें।---*
*दीवाना बना ...
4 years ago
3 comments:
आज नही तो कल उन्हें भारतीयों के बजूद को स्वीकार करना ही होगा !
बहुत बढिया व विचारणीय़ लेख है।
दीपक भारतदीप जी, जो आप ने लिखा हे, बिलकुल सही लिखा हे,लेकिन हम भारतियो को समझ श्याद कभी नही आए,
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