लेते हो पूरा दाम।
अपने खून को पसीने की तरह
बहते क्यों कराहते हो
कोई आकर हमदर्दी दिखाये
क्यों चाहते हो
दौलत के पत्थरों से
दया की उम्मीद क्यों जगाते हो
ओ! मेहनतकशों को
इज्जत दिलाने की ख्वाहिश रखने वालों
बसते हैं जहां जज्बातफरोश
उस महफिल में उनको
चमकाने का झूठा दिलासा क्यों दिलाते हो
अपने लहू से सींचते हैं जो
अपने ही रोटियों का गुलशन
उनको इज्जत की ख्याली गोटियों से क्या काम।
...............................
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
No comments:
Post a Comment