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8/27/09

गरम कुर्सी-हिंदी हास्य कविता (hot seat of sach ka samana-hindi hasya kavita)

इश्क परवान चढ़ जाये
माशुका बीवी बन साथ निभाये
इसलिये आशिक ने कमाने के लिये
सच की पहचान करने वाली मशीन की
दुकान लगाई
और यह खबर माशुका को सुनाई।
सुनकर वह हो गयी पसीना पसीना
पूछने पर बोली
‘’यह कैसी दुकान लगायी।
अरे, तुमने सुना नहीं
इसके चक्कर में अमेरिका में
कितने घर बरबाद हुए हैं
फिर अपने देश में भी हो चुकी
कई लोगों की जगहंसाई।
कोई और काम ढूंढो
कहीं काम नहीं चला तो तुम
कभी खुद गरम कुर्सी (हाट सीट) पर बैठोगे
कभी मुझसे बैठने को कहोगे
कहीं हो न जाये तुम्हारे और मेरे बीच लड़ाई।’’

सुनकर आशिक हंसा और बोला
‘‘अरे, यह बात नहीं है
यह एकदम नयी चीज है
अपने देश का आदमी बस
नयी चीज चाहता है
अपने पुराने ज्ञान से भागता है
अभी तो दुकान पर बोर्ड ही लगा है
तब ढेर सारे लोग तो आ रहे हैं
अपनों का सच जानने उनको ला रहे हैं
जानते हैं सब
सच कड़वा होता है
कभी कभी दुश्मनी का बीज भी बोता है
फिर भी अंधे होकर
फैशन की दौड़ में जा रहे हैं
किसी का घर बिगड़े हमें क्या
अपनी रोजी निकलनी चाहिये
जहां तक तुम्हारे और मेरे बैठने की बात है
भला कोई हलवाई अपनी मिठाई खाता है
जो हम गरम कुर्सी पर बैठेंगे
बहुत सोचकर समझकर ही मैंने यह योजना बनाई।"

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2 comments:

Unknown said...

नई चीज की क्या बात है
बहुत उम्दा !
वाह !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत ही बढ़िया हास्य है।
बधाई!

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