हमने कहा था
‘जख्म पर मरहम लगा दो’
उन्होंने नमक छिड़क दिया।
पीड़ा से हम कराहते रहे
उन्होंने कहा
‘कुछ जोर से कराहो
ताकि हम मरहम लगाकर
जमाने को बता सकें कि
हमने किसी का दर्द कम किया’।
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नजारे तो इस दुनियां में बहुत हैं
मगर लोगों को बस दंगल ही भाता ।
अपने मंगल की बजाय
दूसरे के अमंगल पर मजा आता।
जिंदगी खेल है नजरिये का
जैसी नजर
वैसा ही जमाना हो जाता।
तारीफ के लिये कौन करे
इंसानों का भला
शिकायत के लिये
मजबूर करने वालों का नाम
अखबार की सुर्खियों में ही नजर आता।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर‘जख्म पर मरहम लगा दो’
उन्होंने नमक छिड़क दिया।
पीड़ा से हम कराहते रहे
उन्होंने कहा
‘कुछ जोर से कराहो
ताकि हम मरहम लगाकर
जमाने को बता सकें कि
हमने किसी का दर्द कम किया’।
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नजारे तो इस दुनियां में बहुत हैं
मगर लोगों को बस दंगल ही भाता ।
अपने मंगल की बजाय
दूसरे के अमंगल पर मजा आता।
जिंदगी खेल है नजरिये का
जैसी नजर
वैसा ही जमाना हो जाता।
तारीफ के लिये कौन करे
इंसानों का भला
शिकायत के लिये
मजबूर करने वालों का नाम
अखबार की सुर्खियों में ही नजर आता।
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