स्वर्ग की परियां किसने देखी
स्वयं जाकर
बस एक पुराना ख्याल है।
धरती पर जो मिल सकते हैं,
तमाम तरह के सामान
ऊपर और चमकदार होंगे
यह भी एक पुराना ख्याल है।
मिल भी जायें तो
क्या सुगंध का मजा लेने के लिये
नाक भी होगी,
मधुर स्वर सुनने के लिये
क्या यह कान भी होंगे,
सोना, चांदी या हीरे को
छूने के लिये हाथ भी होंगे,
परियों को देखने के लिये
क्या यह आंख भी होगी,
ये भी जरूरी सवाल है।
धरती से कोई चीज साथ नहीं जाती
यह भी सच है
फिर स्वर्ग के मजे लेने के लिये
कौनसा सामान साथ होगा
यह किसी ने नहीं बताया
इसलिये लगता है स्वर्ग और परियां
बस एक ख्याल है।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anantraj.blogspot.com
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2 comments:
आपने बड़ी हिम्मत और साहस का परिचय देते हुए इस कविता को जन्म दिया है. हकीकत तो यही है लेकिन धर्मान्धता में आकंठ डूबे लोग न तो इसेस्वीकर करते हैं न ही खुलकर झुटलाने की कल्पना. इन्हीं बेतुके विचारों ने धर्म को धंधा बना दिया है. पुण्य करो तो हूरें/अप्सराएँ मिलेंगी. यानी एक पतिव्रता स्त्री को स्वर्ग में सौतन झेलनीपड़ेगी?
bilkul sahi kaha aapne ek vagyanik chintan hi aise baat karne ki himmat kar sakta hai
lekin iske sath us jad ko bhi talash kariye jo lagatar aise andhepan ko janm diye ja raha hai
jo prithavi ko dukh de kar jayega vah swarg mein kya aanand payega
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