जिस विश्वास को पाले रहते हैं
कई बरस तक मन में
जब टूट कर बिखरते हैं कांच की तरह
डूब जाते हैं गम में
कुछ भ्रम होते हैं
जिन्हें हम विश्वास का नाम देते हैं
किसी प्रमाण के बिना हम अजनबियों को
आत्मीय होने का नाम देते हैं
किसी के अपन होने का
अपने को खूब दिलासा दें
हकीकत यह है कि
सैर करने के लिए कई लोग मिलते हैं
पर हम अकेले ही होते हैं चमन में
शब्द तो श्रृंगार रस से सजा है, अर्थ न हो उसमें क्या मजा है-दीपकबापूवाणी
(Shabd to Shrangar ras se saja hai-DeepakBapuwani)
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*बेपर इंसान परिदो जैसे उड़ना चाहें,दम नहीं फैलाते अपनी बाहे।कहें दीपकबापू
भटकाव मन कापांव भटकते जाते अपनी राहें।---*
*दीवाना बना ...
5 years ago
2 comments:
बिल्कुल सही
हम अकेले ही होते हैं
सही कहा-निपट अकेले.
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