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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

11/6/07

हकीकत

जिस विश्वास को पाले रहते हैं
कई बरस तक मन में
जब टूट कर बिखरते हैं कांच की तरह
डूब जाते हैं गम में
कुछ भ्रम होते हैं
जिन्हें हम विश्वास का नाम देते हैं
किसी प्रमाण के बिना हम अजनबियों को
आत्मीय होने का नाम देते हैं
किसी के अपन होने का
अपने को खूब दिलासा दें
हकीकत यह है कि
सैर करने के लिए कई लोग मिलते हैं
पर हम अकेले ही होते हैं चमन में

2 comments:

aarsee said...

बिल्कुल सही
हम अकेले ही होते हैं

Udan Tashtari said...

सही कहा-निपट अकेले.

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